Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

दो दिन ठहर जाओ – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

दो दिन ठहर जाओ - रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

अभी ही तो लदी ही आम की डाली, अभी ही तो बही है गंध मतवाली; अभी ही तो उठी है तान पंचम की, लगी अलि के अधर से फूल की प्याली; दिये कर लाल जिसने गाल कलियों के – तुम्हें उस हास की सौगंध है, दो दिन ठहर जाओ! हृदय में हो रही अनजान–सी धड़कन, रगों में बह रही रंगीन–सी …

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चल उठ नेता – अशोक अंजुम

चल उठ नेता - अशोक अंजुम

चल उठ नेता तू छेड़ तान! क्या राष्ट्रधर्म? क्या संविधान? तू नये ­नये हथकंडे ला! वश में अपने कुछ गुंडे ला फिर ऊँचे­ ऊँचे झंडे ला! हर एक हाथ में डंडे ला! फिर ले जनता की ओर तान! क्या राष्ट्रधर्म? क्या संविधान? इस शहर में खिलते चेहरे क्यों? आपस में रिश्ते गहरे क्यों? घर­ घर खुशहाली चेहरे क्यों? झूठों पर …

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बादलों की रात – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

बादलों की रात - रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

फागुनी ठंडी हवा में काँपते तरु–पात गंध की मदिरा पिये है बादलों की रात शाम से ही आज बूँदों का जमा है रंग नम हुए हैं खेत में पकती फ़सल के अंग समय से पहले हुए सुनसान–से बाज़ार मुँद गये है आज कुछ जल्दी घरों के द्वार मैं अकेला पास कोई भी नहीं है है मीत मौन बैठा सुन रहा …

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मदारी आया

मदारी आया

देखो, एक मदारी आया, संग में अपने बन्दर लाया। डम-डम डमरू बजा रहा है, बन्दर को वह नचा रहा है। चली बन्दरिया देकर ताने, बन्दर उसको लगा मनाने। दोनों ने मिल रंग जमाया, अपना-अपना नाच दिखाया।

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बात कम कीजे – निदा फ़ाज़ली

बात कम कीजे - निदा फ़ाज़ली

बात कम कीजे, ज़िहानत को छिपाते रहिये यह नया शहर है, कुछ दोस्त बनाते रहिये दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये यह तो चेहरे का कोई अक्स है, तस्वीर नहीं इसपे कुछ रंग अभी और चढ़ाते रहिये ग़म है आवारा, अकेले में भटक जाता है जिस जगह रहिये वहाँ मिलते मिलाते …

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असमर्थता – राजेंद्र पासवान ‘घायल’

असमर्थता - राजेंद्र पासवान ‘घायल’

ख्यालों में बिना खोये हुए हम रह नहीं पाते मगर जो है ख्यालों में उसे भी कह नहीं पाते हज़ारों ज़ख्म खाकर भी किसी से कुछ नहीं कहते किसी की बेरुख़ी लेकिन कभी हम सह नहीं पाते हमारे मुस्कुराने पर बहुत पाबन्दियाँ तो हैं मगर पाबन्दियों में हम कभी भी रह नहीं पाते किसी के हाथ का पत्थर हमारी ओर …

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अंतिम मिलन – बालकृष्ण राव

अंतिम मिलन - बालकृष्ण राव

याद है मुझको, तुम्हें भी याद होगा मार्च की वह दोपहर, वह धूल गर्मी और वह सूनी सड़क, जिस पर हजारों पत्तियों सूखी हवा में उड़ रही थीं। हम खड़े थे पेड़ हे नीचे, किनारे, एक ने पूछा, कहा कुछ दूसरे ने, फिर लगे चुपचाप होकर सोचने हम कौन यह पहले कहेगा “अब विदा दो”। क्या हुए थे प्रश्न, क्या …

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ऐसा नियम न बाँधो – आनंद शर्मा

ऐसा नियम न बाँधो - आनंद शर्मा

हर गायक का अपन स्वर है हर स्वर की अपनी मादकता ऐसा नियम न बाँधो सारे गायक एक तरह से गाएँ। कुछ नखशिख सागर भर देते कुछ के निकट गगरियाँ प्यासी कुछ दो बूँद बरस चुप होते कुछ की हैं बरसातें दासी हर बादल का अपना जल है हर जल की अपनी चंचलताा ऐसा नियम न बाँधो सारे बादल एक …

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अभी तो झूम रही है रात – गिरिजा कुमार माथुर

अभी तो झूम रही है रात - गिरिजा कुमार माथुर

बडा काजल आँजा है आज भरी आखों में हलकी लाज। तुम्हारे ही महलों में प्रान जला क्या दीपक सारी रात निशा का­सा पलकों पर चिन्ह जागती नींद नयन में प्रात। जगी–सी आलस से भरपूर पड़ी हैं अलकें बन अनजान लगीं उस माला में कैसी सो न पाई–सी कलियाँ म्लान। सखी, ऐसा लगता है आज रोज से जल्दी हुआ प्रभात छिप …

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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है – दुष्यंत कुमार

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है - दुष्यंत कुमार

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू, मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है। सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर, झोले में उसके पास कोई संविधान है। उस सिरफिरे को यों नहीं बहला सकेंगे आप, वो आदमी नया है मगर सावधान है। …

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