Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

सारे दिन पढ़ते अख़बार – माहेश्वर तिवारी

सारे दिन पढ़ते अख़बार - माहेश्वर तिवारी

सारे दिन पढ़ते अख़बार; बीत गया है फिर इतवार। गमलों में पड़ा नहीं पानी पढ़ी नहीं गई संत-वाणी दिन गुज़रा बिलकुल बेकार सारे दिन पढ़ते अख़बार। पुँछी नहीं पत्रों की गर्द खिड़की-दरवाज़े बेपर्द कोशिश करते कितनी बार सारे दिन पढ़ते अख़बार। मुन्ने का तुतलाता गीत- अनसुना गया बिल्कुल बीत कई बार करके स्वीकार सारे दिन पढ़ते अख़बार बीत गया है …

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बेजगह – अनामिका

बेजगह - अनामिका

अपनी जगह से गिर कर कहीं के नहीं रहते केश, औरतें और नाखून अन्वय करते थे किसी श्लोक का ऐसे हमारे संस्कृत टीचर और डर के मारे जम जाती थीं हम लड़कियाँ अपनी जगह पर। जगह? जगह क्या होती है? यह, वैसे, जान लिया था हमने अपनी पहली कक्षा में ही याद था हमें एक–एक अक्षर आरंभिक पाठों का “राम …

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सच झूठ – ओमप्रकाश बजाज

सच झूठ - ओमप्रकाश बजाज

सच झूठ का फर्क पहचानो झूठे का कहा कभी न मानो। झूठे की संगत न करना, झूठे से सदा बचकर रहना। मित्रता झूठे से न करना, झूठे का कभी साथ न देना। झूठ कभी भी चुप न पाता, देर-सवेर पकड़ा ही जाता। सच्चे का होता सदा बोलबाला, झूठे का मुँह होता काला। ~ ओमप्रकाश बजाज

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चंदा ओ चंदा – ओम प्रकाश बजाज

चंदा ओ चंदा – ओम प्रकाश बजाज

चंदा ओ चंदा तू है कितना प्यारा, सबकी आखों का है तू दुलारा, चंदा ओ चंदा…. तू तो है नित न्यारा, रोशन करता है रत जग सारा, चंदा ओ चंदा…. बताता कोई तुझे मामा हमारा, हम चाहें सिर्फ तुझे अपना बनाना, चंदा ओ चंदा…. होता है जब उपवास माँ का, तब क्यों इतनी देर लगाता, चंदा ओ चंदा…. तू है …

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बातचीत की कला – राजीव कृष्ण सक्सेना

बातचीत की कला - राजीव कृष्ण सक्सेना

समाज से मेरा रिश्ता मेरी पत्नी के माध्यम से है सीधा मेरा कोई रिश्ता बन नहीं पाया है सब्जी वाला दूध वाला अखबार वाला धोबी हो या माली सबकी मेरी पत्नी से बातचीत होती रहती है बस मुझे ही समझ नहीं आता कि इन से बात करूँ तो क्या करूँ पर मेरी पत्नी सहज भाव से इन सब से खूब …

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तुक्तक – बरसाने लाल चतुर्वेदी

तुक्तक - बरसाने लाल चतुर्वेदी

रेडियो पर काम करते मोहनलाल काले साप्ताहिक संपादक उनके थे साले काले के लेख छपते साले के गीत गबते दोनों की तिजोरियों में अलीगढ़ के ताले भाषण देने खड़े हुए मटरूमल लाला दिमाग़ पर न जाने क्यों पड़ गया था ताला घर से याद करके स्पीच ख़ूब रटके लेकिन आके मंच पर जपने लगे माला साले की शादी में गए …

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बस इतना सा समाचार है – अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’

बस इतना सा समाचार है - अमिताभ त्रिपाठी

जितना अधिक पचाया जिसने उतनी ही छोटी डकार है बस इतना सा समाचार है। निर्धन देश धनी रखवाले भाई‚ चाचा‚ बीवी‚ साले सब ने मिल कर डाके डाले शेष बचा सो राम हवाले फिर भी सांस ले रहा अब तक कोई दैवी चमत्कार है बस इतना सा समाचार है। चादर कितनी फटी पुरानी पैबंदों में खींची–तानी लाठी की चलती मनमानी …

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बरसों के बाद – गिरिजा कुमार माथुर

बरसों के बाद - गिरिजा कुमार माथुर

बरसों के बाद कभी हम–तुम यदि मिलें कहीं देखें कुछ परिचित–से लेकिन पहिचाने ना। याद भी न आये नाम रूप, रंग, काम, धाम सोचें यह संभव है पर, मन में माने ना। हो न याद, एक बार आया तूफान ज्वार बंद, मिटे पृष्ठों को पढ़ने की ठाने ना। बातें जो साथ हुईं बातों के साथ गईं आँखें जो मिली रहीं उनको भी जानें ना। ∼ गिरिजा …

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बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी

बांसुरी दिन की - माहेश्वर तिवारी

होंठ पर रख लो उठा कर बांसुरी दिन की देर तक बजते रहें ये नदी, जंगल, खेत कंपकपी पहने खड़े हों दूब, नरकुल, बेंत पहाड़ों की हथेली पर धूप हो मन की। धूप का वातावरण हो नयी कोंपल–सा गति बन कर गुनगुनाये ख़ुरदुरी भाषा खुले वत्सल हवाओं की दूधिया खिड़की। ∼ माहेश्वर तिवारी

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बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं – दुष्यंत कुमार

बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं - दुष्यंत कुमार

बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने हैं। चीड़-वन में आंधियों की बात मत कर, इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं। इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं, जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं। आपके क़ालीन देखेंगे किसी दिन, इस समय तो पांव कीचड़ में सने हैं। जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में, …

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