Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

हम आजाद हैं – केदारनाथ ‘सविता’

हम आजाद हैं - केदारनाथ ‘सविता’

हम आजाद हैं कहीं भी जा सकते हैं कुछ भी कर सकते हैं कहीं भी थूक सकते हैं कुछ भी फेंक सकते हैं हम आजाद हैं घर का कूड़ा छत पर से किसी पर भी फेंक सकते हैं गंगा की सफाई योजना की कर के सफाई हम किसी भी पवित्र नदी में घर की गंदगी बहा सकते हैं अरे, कहां …

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नन्हा पौधा – वेंकटेश चन्द्र पाण्डेय

नन्हा पौधा - वेंकटेश चन्द्र पाण्डेय

एक बीज था गया बहुत ही गहराई में बोया। उसी बीज के अंतर में था नन्हा पाौधा सोया। उस पौधे को मंद पवन ने आकर पास जगाया। नन्हीं नन्हीं बूंदों ने फिर उस पर जल बरसाया। सूरज बोला “प्यारे पौधे निंद्रा दूर भगाओ। अलसाई आंखें खोलो तुम उठ कर बाहर आओ। आंख खोल कर नन्हें पौधे ने तब ली अंगड़ाई। …

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नदी के पार से मुझको बुलाओ मत – राजनारायण बिसारिया

नदी के पार से मुझको बुलाओ मत - राजनारायण बिसारिया

नदी के पार से मुझको बुलाओ मत! हमारे बीच में विस्तार है जल का कि तुम गहराइयों को भूल जाओ मत! कि तुम हो एक तट पर एक पर मैं हूं बहुत हैरान दूरी देख कर मैं हूं‚ निगाहें हैं तुम्हारी पास तक आतीं कि बाहें हैं स्वयं मेरी फड़क जातीं! गगन में ऊंघती तारों भरी महफिल न रुकती है‚ …

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लजीली रात आई है – चिरंजीत

लजीली रात आई है - चिरंजीत

सजोले चांद को लेकर‚ नशीली रात आई है। नशीली रात आई है। बरसती चांदनी चमचम‚ थिरकती रागिनी छम छम‚ लहरती रूप की बिजली‚ रजत बरसात आई है। नशीली रात आई है। जले मधु रूप की बाती‚ दुल्हनिया रूप मदमाती‚ मिलन के मधुर सपनों की‚ सजी बारात आई है। नशीली रात आई है। सजी है दूधिया राहें‚ जगी उन्मादनी चाहें‚ रही …

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मधुशाला – हरिवंश राय बच्चन

मधुशाला – हरिवंश राय बच्चन

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला॥१॥ प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज …

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संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार

वो पंगत में बैठ के निवालों का तोड़ना, वो अपनों की संगत में रिश्तों का जोडना, वो दादा की लाठी पकड़ गलियों में घूमना, वो दादी का बलैया लेना और माथे को चूमना, सोते वक्त दादी पुराने किस्से कहानी कहती थीं, आंख खुलते ही माँ की आरती सुनाई देती थी, इंसान खुद से दूर अब होता जा रहा है, वो संयुक्त परिवार का दौर अब खोता …

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पीहर का बिरवा – अमरनाथ श्रीवास्तव

पीहर का बिरवा – अमरनाथ श्रीवास्तव

पीहर का बिरवा छतनार क्या हुआ सोच रहीं लौटी ससुराल से बुआ। भाई भाई फरीक पैरवी भतीजों की मिलते हैं आस्तीन मोड़े कमीजों की झगड़े में है महुआ डाल का चुआ। किसी की भरी आंखें जीभ ज्यों कतरनी है‚ किसी के तने तेवर हाथ में सुमिरनी है‚ कैसा कैसा अपना ख़ून है मुआ। खट्टी–मीठी यादें अधपके करौंदों की हिस्से बटवारे …

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नदी सा बहता हुआ दिन – सत्यनारायण

नदी सा बहता हुआ दिन – सत्यनारायण

कहां ढूंढें नदी सा बहता हुआ दिन वह गगन भर धूप‚ सेनुर और सोना धार का दरपन‚ भंवर का फूल होना हां किनारों से कथा कहता हुआ दिन। सूर्य का हर रोज नंगे पांव चलना घाटियों में हवा का कपड़े बदलना ओस‚ कोहरा‚ घाम सब सहता हुआ दिन। कौन देगा मोरपंखों से लिखे छन रेतियों पर सीप शंखों से लिखे …

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मांझी न बजाओ बंशी – केदार नाथ अग्रवाल

मांझी न बजाओ बंशी – केदार नाथ अग्रवाल

मांझी न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता। मेरा मन डोलता जैसे जल डोलता। जल का जहाज जैसे पल पल डोलता। मांझी न बजाओ बंशी‚ मेरा मन डोलता। मांझी न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता‚ मेरा प्रन टूटता जैसे तृन टूटता‚ तृन का निवास जैसे वन वन टूटता। मांझी न बजाओ बंशी‚ मेरा प्रन टूटता। मांझी न बजाओ बंशी मेरा तन …

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कौन गाता जा रहा है – विद्यावती कोकिल

कौन गाता जा रहा है – विद्यावती कोकिल

कौन गाता जा रहा है? मौनता को शब्द देकर शब्द में जीवन संजोकर कौन बंदी भावना के पर लगाता जा रहा है कौन गाता जा रहा है? घोर तम में जी रहे जो घाव पर भी घाव लेकर कौन मति के इन अपंगों को चलाता जा रहा है कौन गाता जा रहा है? कौन बिछुड़े मन मिलाता और उजड़े घर …

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