जीवन के रेतीले तट पर‚ मैं आँधी तूफ़ान लिये हूँ। अंतर में गुमनाम पीर है गहरे तम से भी है गहरी अपनी आह कहूँ तो किससे कौन सुने‚ जग निष्ठुर प्रहरी पी–पीकर भी आग अपरिमित मैं अपनी मुस्कान लिये हूँ। आज और कल करते करते मेरे गीत रहे अनगाये जब तक अपनी माला गूँथूँ तब तक सभी फूल मुरझाये तेरी …
Read More »एक चाय की चुस्की – उमाकांत मालवीय
एक चाय की चुस्की, एक कहकहा अपना तो इतना सामान ही रहा चुभन और दंशन पैने यथार्थ के पग–पग पर घेरे रहे प्रेत स्वार्थ के भीतर ही भीतर मैं बहुत ही दहा किंतु कभी भूले से कुछ नहीं कहा एक चाय की चुस्की, एक कहकहा एक अदद गंध, एक टेक गीत की बतरस भीगी संध्या बातचीत की इन्हीं के भरोसे …
Read More »क्या करूँ अब क्या करूँ – राजीव कृष्ण सक्सेना
माम को मैं तंग करूँ या डैड से ही जंग करूँ मैं दिन रहे सोता रहूँ फिर रात भर रोता रहूँ पेंट बुक दे दो जरा तो रंग कागज पर भरूँ या स्काइप को ही खोल दो तो बात नानी से करूँ मैं बाल खीचूं माम के की ले चलो बाहर मुझे या झूल जाऊं मैं गले से कोई ना …
Read More »यहाँ भी, वहाँ भी – निदा फ़ाज़ली
इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी खूँख्वार दरिन्दों के फ़क़त नाम अलग हैं शहरों में बयाबान यहाँ भी है वहाँ भी रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी हिंदू भी मज़े में है‚ मुसलमाँ भी मजे में इन्सान परेशान यहाँ भी …
Read More »तुम निश्चिन्त रहना – किशन सरोज
कर दिये लो आज गंगा में प्रवाहित सब तुम्हारे पत्र‚ सारे चित्र तुम निश्चिन्त रहना। धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनुष छू गये नत भाल पर्वत हो गया मन बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित वह नदी होगी नहीं अपवित्र तुम निश्चिन्त रहना। दूर हूं तुमसे न …
Read More »तूफानों की ओर घुमा दो नाविक – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला है लहरों का यौवन मचला है आज हृदय में और सिन्धु में साथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार तूफानों की ओर घुमा दो …
Read More »समोसा – ओम प्रकाश बजाज
चटनी के साथ गर्म- गर्म समोसा, चाय के साथ परोसा जाता है। बच्चा, बड़ा, मर्द, औरत हर कोई बड़े चाओ से खाता है, न जाने कब किसने समोसे का, पहली बार अविष्कार किया। बाहरी आवरण बनाया समोसा भरा, तेल में तल कर समोसा तैयार किया। तब से अब तक अनगिनत पीढ़िया, इसका आनदं लेती आई है। कही-कही इसी पकवान को, …
Read More »मज़ा ही कुछ और है – ओम व्यास ओम
दांतों से नाखून काटने का छोटों को जबरदस्ती डांटने का पैसे वालों को गाली बकने का मूंगफली के ठेले से मूंगफली चखने का कुर्सी पे बैठ कर कान में पैन डालने का और डीटीसी की बस की सीट में से स्पंज निकालने का मज़ा ही कुछ और है एक ही खूंटी पर ढेर सारे कपड़े टांगने का नये साल पर …
Read More »पिता – ओम व्यास ओम
पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा है पिता पालन है, पोषण है, पारिवारि का अनुशासन है पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान …
Read More »लौट आओ – सोम ठाकुर
लौट आओ मांग के सिंदूर की सौगंध तुमको नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है। आज बिसराकर तुम्हें कितना दुखी मन‚ यह कहा जाता नहीं है मौन रहना चाहता‚ पर बिन कहे भी अब रहा जाता नहीं है मीत अपनों से बिगड़ती है‚ बुरा क्यों मानती हो लौट आओ प्राण! पहले प्यार की सौगंध तुमको प्रीत का बचपन निमंत्रण दे …
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