Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

कोई और छाँव देखेंगे – ताराप्रकाश जोशी

कोई और छाँव देखेंगे – ताराप्रकाश जोशी

कोई और छाँव देखेंगे। लाभ घाटों की नगरी तज चल दे और गाँव देखेंगे। सुबह सुबह के सपने लेकर हाटों हाटों खाए फेरे। ज्यों कोई भोला बनजारा पहुचे कहीं ठगों के डेरे। इस मंडी में ओछे सौदे कोई और भाव देखेंगे। भरी दुपहरी गाँठ गँवाई जिससे पूछा बात बनाई। जैसी किसी ग्रामवासी की महा नगर ने हँसी उड़ाई। ठौर ठिकाने …

Read More »

लगाव – निदा फ़ाज़ली

लगाव - निदा फ़ाज़ली

तुम जहाँ भी रहो उसे घर की तरह सजाते रहो गुलदान में फूल सजाते रहो दीवारों पर रंग चढ़ाते रहो सजे बजे घर में हाथ पाँव उग आते हैं फिर तुम कहीं जाओ भले ही अपने आप को भूल जाओ तुम्हारा घर तुम्हें ढूंढ कर वापस ले आएगा ~ निदा फ़ाज़ली

Read More »

अहतियात – निदा फ़ाज़ली

अहतियात - निदा फ़ाज़ली

घर से बाहर जब भी जाओ तो ज्यादा से ज्यादा रात तक लौट आओ जो कई दिन तक ग़ायब रह कर वापस आता है वो उम्र भर पछताता है घर अपनी जगह छोड़ कर चला जाता है। ~ निदा फ़ाज़ली

Read More »

गरीबों की जवानी – देवी प्रसाद शुक्ल ‘राही’

गरीबों की जवानी - देवीप्रसाद शुक्ल राही

रूप से कह दो कि देखें दूसरा घर, मैं गरीबों की जवानी हूँ, मुझे फुर्सत नहीं है। बचपने में मुश्किल की गोद में पलती रही मैं धूंए की चादर लपेटे, हर घड़ी जलती रही मैं ज्योति की दुल्हन बिठाए, जिंदगी की पालकी में सांस की पगडंडियों पर रात–दिन चलती रही मैं वे खरीदें स्वपन, जिनकी आँख पर सोना चढ़ा हो …

Read More »

फूल और कली – उदय प्रताप सिंह

फूल और कली - उदय प्रताप सिंह

फूल से बोली कली‚ क्यों व्यस्त मुरझाने में है फायदा क्या गंध औ’ मकरंद बिखराने में है तू स्वयं को बांटता है‚ जिस घड़ी से तू खिला किंतु इस उपकार के बदले में तुझको क्या मिला देख मुझको‚ सब मेरी खुशबू मुझी में बंद है मेरी सुंदरता है अक्षय‚ अनछुआ मकरंद है मैं किसी लोलुप भ्रमर के जाल में फंसती …

Read More »

परदेसी को पत्र – त्रिलोचन

परदेसी को पत्र - त्रिलोचन

सोसती सर्व उपमा जोग बाबू रामदास को लिखा गनेसदास का नाम बाँचना। छोटे बड़े का सलाम आसिरवाद जथा उचित पहुँचे। आगे यहाँ कुसल है तुम्हारी कुसल काली जी से दिन रात मनाती हूँ। वह जो अमौला तुमने धरा था द्वार पर अब बड़ा हो गया है। खूब घनी छाया है। भौंरौं की बहार है। सुकाल ऐसा ही रहा तो फल …

Read More »

हरी तुम हरो जन की भीर – मीरा बाई

हरी तुम हरो जन की भीर - मीरा बाई

द्रौपदी की लाज राखी‚ तुरत बढ़ायो चीर। भक्त कारण रूप नरहरी‚ धर्यो आप सरीर। हिरनकुश मारि लीन्हों‚ धर्यो नाहिन धीर। हरी तुम हरो जन की भीर। बूड़तो गजरात राख्यौ‚ कियौ बाहर नीर। दासी मीरा लाल गिरधर‚ चरण कंवल पर सीर। हरी तुम हरो जन की भीर। ~ मीरा बाई

Read More »

पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो – मीरा बाई

पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो - मीरा बाई

वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा कर अपणायो पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो जनम–जनम की पूँजी पाई जग में सबै खोबायो खरचे नहीं‚ कोई चोर न लेवै दिन–दिन बढ़त सवायौ पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो सत की नाव‚ खेवटिया सतगुरु भव सागर तरि आयौ मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरिख–हरिख जस गायौ पायो जी मैंने‚ राम …

Read More »

दाढ़ी महिमा – काका हाथरसी

दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी

‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन जाते? शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर जनता के सिरमौर, …

Read More »

पड़ोस – ऋतुराज

पड़ोस - ऋतुराज

कोयलों ने क्यों पसंद किया हमारा ही पेड़? बुलबुलें हर मौसम में क्यों इसी पर बैठी रहती हैं? क्यों गौरैयों के बच्चे हो रहे हैं बेशुमार? क्यों गिलहरी को इसपर से उतरकर छत पर चक्कर काटना अच्छा लगता है? क्यों गिरगिट सोया रहता है यहाँ? शायद इन मुफ्त के किराएदारों को हमारा पड़ोस अच्छा लगता है वे देखते होंगे कि …

Read More »