पढ़ कर दर्दीला अफसाना हाल ही में तुम बहुत मुसकराई हो कुछ देर रोने के बाद यादों के आशियाने में छिपे झरोखे को ढूंढ़ पाने के दौरां जहां बोझल होती थीं पलकें चेहरा तुम्हारा चूमती थीं सुबह की देख कर किरणें चांद के ढल जाने के बाद तुम बहुत मुसकराई होगी कुछ देर रोने के बाद। ~ राजीव रोहित
Read More »हौसले तेरे हैं बुलंद – आर पी मिश्रा ‘परिमल’
कैसे ये मासूम पाखी तूफान से टकराएंगे आंधियों में किस तरह लौट कर घर आएंगे इन की हिम्मत में है जोखिम से खेलना जोखिमों से खेलते एक दिन मर जाएंगे गमलों में ये बदबू सी क्यों आने लगी बदल दो पानी वरना पेड़ सब मर जाएंगे दूध सांपों को क्या पिलाएं इस साल बांबियों में नहीं, संसद की गली मुड़ …
Read More »मीत तुम्हारी वो बातें – डॉक्टर पारुल तोमर
हंसी रेशमी अधरों वाली सजीसंवरी थी प्रातें बिसरा मन का सूनापन पाई थीं सतरंगी सौगातें तनहा सी एक दुपहरी में आए थे बादल मंडराते भर अंक में की थी तुम ने स्नेह की निर्झर बरसातें ढलती थी सांझ सुरमई पलपल प्यार को पाते बातें करते कट जाती थीं महकी चहकी वो रातें किस से कहते – कैसे कहते मीत तुम्हारी …
Read More »तेरी याद – बलविंदर ‘बालम’
दर्द की कीमत चुकाई जाएगी याद तेरी जब भी पाई जाएगी चैन फिर उड़ने लगेगा प्यार में नींद आंखों से चुराई जाएगी दूरियां उस को समझ आ जाएंगी जब मेरी अरथी उठाई जाएगी वो मुझ से मिलने का वादा तो करे पथ पर चांदनी बिछाई जाएगी उलटा दर्पण उस ने सीधा कर दिया अब हकीकत ही दिखाई जाएगी रूठने का …
Read More »प्यार की बात करो – शंभु शरण मंडल
जब कभी इश्क प्यार की बात करो न कभी जीत हार की बात करो दो घड़ी ये मिलन की हमारे लिए कीमती हैं दीदार की बात करो डर गए तो गए इस जमाने से हम अब चलो आर पार की बात करो संग मिल के सनम खाई थी जो कसम वक्त है इकरार का बात करो ~ शंभु शरण मंडल
Read More »नाश देवता – गजानन माधव मुक्तिबोध
घोर धनुर्धर‚ बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा‚ तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा। हिमवत‚ जड़‚ निःस्पंद हृदय के अंधकार में जीवन भय है। तेरे तीक्षण बाण की नोकों पर जीवन संचार करेगा। तेरे क्रुद्ध वचन‚ बाणों की गति से अंतर में उतरेंगे‚ तेरे क्षुब्ध हृदय के शोले‚ उर ही पीड़ा में ठहरेंगे। कोपित तेरा अधर संस्फुरण‚ …
Read More »माता की मृत्यु पर – प्रभाकर माचवे
माता! एक कलख है मन में‚ अंत समय में देख न पाया आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया। और देख कर भी क्या करता? सब विज्ञान जहां पर हारे‚ उस देहली को पार कर गयी‚ ठिठके हैं हम ‘मरण–दुआरे’। जीवन में कितने दुख झेले‚ तुमने कैसे जनम बिताया! नहीं एक सिसकी भी निकली‚ रस दे कर …
Read More »लो वही हुआ – दिनेश सिंह
लो वही हुआ जिसका था डर‚ ना रही नदी‚ ना रही लहर। सूरज की किरण दहाड़ गई गरमी हर देह उधाड़ गई‚ उठ गया बवंडर‚ धूल हवा में अपना झंडाा गाड़ गई गौरैया हांफ रही डर कर‚ ना रही नदी‚ ना रही लहर। हर ओर उमस के चर्चे हैं‚ बिजली पंखों के खरचे हैं‚ बूढ़े महुए के हाथों से उड़ …
Read More »टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी – वंदना गोयल
इस टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी को हंस के मैं पी रही हूं किस्तों में मिल रही है किस्तों में जी रही हूं कभी आंखों में छिपा रह गया था इक टुकड़ा बादल बरसते उन अश्कों को दिनरात मैं पी रही हूं अक्स टूटते बिखरते आईनों से बाहर निकल आते हैं मेरा समय ही अच्छा नहीं बस जज्बातों में जी रही हूं …
Read More »कल और आज – नागार्जुन
अभी कल तक गालियां देते थे तुम्हें हताश खेतिहर, अभी कल तक धूल में नहाते थे गौरैयों के झुंड, अभी कल तक पथराई हुई थी धनहर खेतों की माटी, अभी कल तक दुबके पड़े थे मेंढक, उदास बदतंग था आसमान! और आज ऊपर ही ऊपर तन गए हैं तुम्हारे तंबू, और आज छमका रही है पावस रानी बूंदा बूंदियों की …
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