Prabhakar Machwe

डॉ. प्रभाकर माचवे (1917 - 1991) हिन्दी के साहित्यकार थे। उनका जन्म ग्वालियर में हुआ एवं शिक्षा इंदौर में और आगरा में हुई। इन्होंने एम.ए., पी-एच.डी. एवं साहित्य वाचस्पति की उपाधियां प्राप्त कीं। ये मजदूर संघ, आकाशवाणी, साहित्य आकदमी, भारतीय भाषा परिषद् आदि से सम्बध्द रहे। देश और विदेश में अध्यापन किया। इनके कविता-संग्रह हैं— ‘स्वप्न भंग’, ‘अनुक्षण’, ‘तेल की पकौडियां’ तथा ‘विश्वकर्मा’ आदि। इन्होंने उपन्यास, निबंध, समालोचना, अनुवाद आदि मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी में 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सम्मान प्राप्त हुआ है। इन्हें सन् 1989 में ‘सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’ भी प्रदान किया गया।

माता की मृत्यु पर – प्रभाकर माचवे

माता की मृत्यु पर – प्रभाकर माचवे

माता! एक कलख है मन में‚ अंत समय में देख न पाया आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया। और देख कर भी क्या करता? सब विज्ञान जहां पर हारे‚ उस देहली को पार कर गयी‚ ठिठके हैं हम ‘मरण–दुआरे’। जीवन में कितने दुख झेले‚ तुमने कैसे जनम बिताया! नहीं एक सिसकी भी निकली‚ रस दे कर …

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रेखा चित्र – प्रभाकर माचवे

सांझ है धुंधली‚ खड़ी भारी पुलिया देख‚ गाता कोई बैठ वाँ‚ अन्ध भिखारी एक। दिल का विलकुल नेक है‚ करुण गीत की टेक– “साईं के परिचै बिना अन्तर रहिगौ रेख।” (उसे काम क्या तर्क से‚ एक कि ब्रह्म अनेक!) उसकी तो सीधी सहज कातर गहिर गुहारः चाहे सारा अनसुनी कर जाए संसार! कोलाहल‚ आवागमन‚ नारी नर बेपार‚ वहीं रूप के …

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