चंद्रशेखर आजाद पर हिंदी कविता

चंद्रशेखर आजाद पर हिंदी कविता: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी

चंद्रशेखर आजाद पर हिंदी कविता: चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 – 27 फ़रवरी 1931) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे।

चंद्रशेखर आजाद: सुशील कुमार शर्मा की हिंदी कविता

तुम आजाद थे, आजाद हो, आजाद रहोगे,
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे।

मौत से आंखें मिलाकर वह बात करता था,
अंगदी व्यक्तित्व पर जमाना नाज करता था।

असहयोग आंदोलन का वो प्रणेता था,
भारत की स्वतंत्रता का वो चितेरा था।

बापू से था प्रभावित, पर रास्ता अलग था,
खौलता था खून अहिंसा से वो विलग था।

बचपन के पन्द्रह कोड़े, जो उसको पड़े थे,
आज उसके खून में वो शौर्य बन खड़े थे।

आजाद के तन पर कोड़े तड़ातड़ पड़ रहे थे,
‘जय भारती’ का उद्घोष चन्दशेखर कर रहे थे।

हर एक घाव कोड़े का देता मां भारती की दुहाई,
रक्तरंजित तन पर बलिदान की मेहंदी रचाई।

अहिंसा का पाठ उसको कभी न भाया,
खून के ही पथ पर उसने सुकून पाया।

उसकी शिराओं में दमकती थी जोशो जवानी,
युद्ध के भीषण कहर से लिखी थी उसने कहानी।

उसकी फितरत में नहीं थीं प्रार्थनाएं,
उसके शब्दकोशों में नहीं थीं याचनाएं।

नहीं मंजूर था उसको गिड़गिड़ाना,
और शत्रु के पैर के नीचे तड़फड़ाना।

मंत्र बलिदान का उसने चुना था,
गर्व से मस्तक उसका तना था।

क्रांति की ललकार को उसने आवाज दी थी,
स्वतंत्रता की आग को परवाज दी थी।

मां भारती की लाज का वो पहरेदार था,
भारत की स्वतंत्रता का वो पैरोकार था।

अल्फ्रेड पार्क में लगी थी आजाद की मीटिंग,
किसी मुखबिर ने कर दी देश से चीटिंग।

नॉट बाबर ने घेरा और पूछा कौन हो तुम,
गोली से दिया जवाब तुम्हारे बाप हैं हम।

सभी साथियों को भगाकर रह गया अकेला,
उस तरफ लगा था बंदूक लिए शत्रुओं का मेला।

सिर्फ एक गोली बची थी भाग किसने था मेटा,
आखिरी दम तक लड़ा वो मां भारती का था बेटा।

रखी कनपटी पर पिस्तौल और दाग दी गोली,
मां भारती के लाल ने खेल ली खुद खून की होली।

तुम आजाद थे, आजाद हो, आजाद रहोगे,
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे।

~ चंद्रशेखर आजाद पर हिंदी कविता by ‘सुशील कुमार शर्मा’

क्रांतिकारी पर कविता

चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था। 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया।

उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वन्दे मातरम्‌’ और ‘महात्मा गांधी की जय’ का स्वर बुलंद किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है।

जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी‘ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।

17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।

इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था – लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया।

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