विद्यालय मैगजीन से हिंदी बाल-कविताएँ

एक बेटी के पिता का दर्द

वह रोती थी मैं डर जाता था
दौड़ कर जाता उस पर चिल्लाता था
दौड़ न पगली, किसी दिन जोर से गिर जाएगी
खुद भी रोएगी मुझे भी रुलाएगी।

वह फिर दौड़ कर आती थी, आकर मुझसे लिपट जाती थी
अपने आंसू मेरे कंधे से पोंछकर, धीरे से मुस्कुराती थी
मुझे सुकून-सा मिल जाता था, उसे देख मैं भी मुस्कुराता
उसकी हंसी से दिल में एक ठंडक-सी पड़ जाती थी
भगवान ही मिल जाता था, जब मेरी बेटी मुस्कुराती थी।

अब वह बड़ी हो गई, शादी कर दी
अब मेरी कहां रही है?
बेटी तो पराया धन है, सबने यही बताया था
बचपन से यही सुनाता आया था।

अब वह दौड़कर नहीं, गुमसुम-सी चली आती है
आंसू नहीं आने देती, पर कंधे से तो लग जाती है
अब भी वह धीरे से मुस्कुराती है
पर मुझे सुकून नहीं मिलता है।

पहले मुस्कुराने से जो खिल जाता था उसका चेहरा
आज हंसने से भी नहीं खिलता है
मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा देता हूं
उसकी तरह अपना दर्द छिपा लेता हूं
पर ये बेबस आंखें मुस्कुरा नहीं पातीं
छलक ही जाती हैं, दर्द छुपा नहीं पातीं
रोते-रोते हंस कर फिर यहीं कहता हूँ
तू चली गई न इसलिए रोता रहता हूँ।

पर अब वह छोटी नहीं रही, सब समझ जाती है
एक नकली हंसी हंसकर, मुझे झूठी बातों से बहलाती है।
मैं भी उसकी बातों से झूठा ही बहल जाता हूं
बाप हूं न बेटी का, इसलिए कुछ नहीं कर पाता हूं।
कल वह रोती थी तो डर लगता था
आज हंसती है तो भी डर जाता हूं
आज हंसती है तो डर जाता हूं।

Check Also

Jesus Christ

A Good Friday: Short English Poetry on Crucifixion of Jesus

A Good Friday: Christina Georgina Rossetti Am I a stone, and not a sheep, That I …