Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

कस्बे की शाम – धर्मवीर भारती

झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई खेतों में अन्हियारी घिर आई पश्चिम की सुनहरिया घुंघराई टीलों पर, तालों पर इक्के दुक्के अपने घर जाने वाले पर धीरे धीरे उतरी शाम ! आँचल से छू तुलसी की थाली दीदी ने घर की ढिबरी बाली जम्हाई ले लेकर उजियाली, जा बैठी ताखों में घर भर के बच्चों की आँखों में धीरे धीरे उतरी शाम …

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मंगलम कोसलेन्ड़ृअय

मंगलम कोसलेन्ड़ृअय — Kosalendraya , Mahaneeya Gunabhdhaye Kosalendraya , Mahaneeya Gunabhdhaye, Chakravarthi Thanujaaya Sarva Bhoumaya Mangalam. 1 (Let good happen to , Rama , Who is the king of Kosala, And the ocean of good qualities. Let good happen to Rama, Who is son of emperor Dasaratha, And who is a very great king.) Vedavedantha Vedhyaya , Megha Shyamala Moorthaye, …

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क्यों ऐसा मन में आता है – दिविक रमेश

जब भी देखूं कोई ठिठुरता, मन में बस ऐसा आता है। ढाँपू उसको बन कर कम्बल, सोच के मन खुश हो जाता है। मत बनूँ बादाम या पिस्ता, मूंगफली ही मैं बन जाऊं। जी में तो यह भी आता है, कड़क चाय बन उनको भाऊं। बन कर थोड़ी धुप सुहानी, उनके आँगन में खिल जाऊं। गरम-गरम कर उसके तन को, …

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किताबें कुछ कहना चाहती हैं – सफ़दर हाश्मी

किताबें करती हैं बातें बीते ज़मानों की दुनिया की, इंसानों की आज की, कल की एक-एक पल की ख़ुशियों की, ग़मों की फूलों की, बमों की जीत की, हार की प्यार की, मार की क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें? किताबें कुछ कहना चाहती हैं। तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥ किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं किताबों में खेतियाँ …

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क्यों नहीं देखते – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

जब रास्ता तुम भटक जाते हो क्यों नहीं देखते इन तारों की तरफ ये तो विद्यमान हैं हर जगह इन्हे तो पता हैं सारे मार्ग जब आक्रोश उत्त्पन्न होता है तुम्हारे हृदय में वेदना कसकती है और क्रोध किसी को जला डालना चाहता है क्यों नहीं देखते सूरज की तरफ ये भी नाराज़ है बरसों से पता नहीं किस पर …

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क्यों – श्रीनाथ सिंह

पूछूँ तुमसे एक सवाल, झटपट उत्तर दो गोपाल मुन्ना के क्यों गोरे गाल? पहलवान क्यों ठोके ताल? भालू के क्यों इतने बाल? चले सांप क्यों तिरछी चाल? नारंगी क्यों होती लाल? घोड़े के क्यों लगती नाल? झरना क्यों बहता दिन रात? जाड़े में क्यों कांपे गात? हफ्ते में क्यों दिन हैं सात? बुड्ढों के क्यों टूटे दांत? ढ़म ढ़म ढ़म …

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देश की मिट्टी – शम्भू नाथ

इस मिट्टी से बैर करो मत, ये मिट्टी ही सोना है। इसी में हंसना इसी में गाना, इसी में यारों रोना है। इस मिट्टी में जन्म लिये हो, इसी मिट्टी में रहना है। इसी में खा के इसी में जा के, इसी में वापस आना है। इससे प्रेम करोगे प्यारे, नाम अमर हो जाना है। इसी में सपना इसी में …

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केजरीवाल चालीसा – शम्भू नाथ

दोहा: सच्चाई की अलख जगाई जनता दे दिया साथ॥ विजय पताका हासिल कर ली खा गए सारे मात॥ चौपाई: जय केजरी कुंवर बलवंता। मनीष कुमार और भगवंता॥ सच की टोपी सर पर सोहे। मृदु वचन से जनता मोहे॥ पूर्ण वादे को करने वाले। लोगों का दुःख रहने वाले॥ भ्रष्टाचार को करो उजागर। अत्याचारी की फोड़ो गागर॥ नीति विरोध काम नहीं …

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क्यों करते हो झगड़े – शम्भू नाथ

क्यों करते हो झगड़े, क्यों पालते हो लफ़ड़े आपस में प्रेम करो, बैर विरोध मिटाओ। सब छोड़ यहीं जाना है, कुछ साथ नहीं जायेगा अच्छाई और बुराई का लेख, यहीं रह जायेगा रह-रह कर प्यारे, तू भी पछतायेगा। ये पानी की बूंदें हैं, सागर का किनारा है यहाँ सबको आना है, सबको जाना है जब जाना है अकेला तो, क्यों करते हो झमेला सब कुछ …

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कुंजी – रामधारी सिंह दिनकर

घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन, जब मैं बालक अबोध अनजान था। यह पवन तुम्हारी साँस का सौरभ लाता था। उसके कंधों पर चढ़ा मैं जाने कहाँ-कहाँ आकाश में घूम आता था। सृष्टि शायद तब भी रहस्य थी। मगर कोई परी मेरे साथ में थी; मुझे मालूम तो न था, मगर ताले की कूंजी मेरे हाथ में थी। जवान …

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