जिंदगी ने कर लिया स्वीकार‚ अब तो पथ यही है। अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है‚ एक हलका सा धुंधलका था कहीं‚ कम हो चला है‚ यह शिला पिघले न पिघले‚ रास्ता नम हो चला है‚ क्यों करूं आकाश की मनुहार‚ अब तो पथ यही है। क्या भरोसा‚ कांच का घट है‚ किसी दिन फूट जाए‚ एक …
Read More »आदत – सहने की – ओम प्रकाश बजाज
जरा – जरा सी बात पर, न शोर मचाओ। थोड़ा बहुत सहने की, आदत भी बनाओ। चोट – चपेट तो सब को, लगती रहती है। कठिनाइया परेशानियां तो, आती-जाती रहती है। धीरज रखना ही पड़ता है, सहना – सुनना भी पड़ता है। सहनशीलता जीवन में, बहुत काम आती है। निराश होने से हमें, सदा बचाती है। ~ ओम प्रकाश बजाज
Read More »आठवाँ आने को है – अल्हड़ बीकानेरी
मंत्र पढ़वाए जो पंडित ने, वे हम पढ़ने लगे, यानी ‘मैरिज’ की क़ुतुबमीनार पर चढ़ने लगे। आए दिन चिंता के फिर दौरे हमें, पड़ने लगे, ‘इनकम’ उतनी ही रही, बच्चे मगर बढ़ने लगे। क्या करें हम, सर से अब पानी गुज़र जाने को है, सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है। घर के अंदर मचती रहती है सदा …
Read More »आरम्भ है प्रचंड – पीयूष मिश्रा
आरम्भ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या कि जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो। आरम्भ है प्रचंड… मन करे सो प्राण दे जो मन करे सो प्राण ले वही तो एक सर्वशक्तिमान है, कृष्ण की पुकार है ये भागवत का सार है …
Read More »आओ कुछ राहत दें – दिनेश मिश्र
आओ कुछ राहत दें इस क्षण की पीड़ा को क्योंकि नये युग की तो बात बड़ी होती है‚ अपने हैं लोग यहां बैठो कुछ बात करो मुश्किल से ही नसीब ऐसी घड़ी होती है। दर्द से लड़ाई की कांटों से भरी उगर एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर‚ झूठे पैंगंबर तो मौज किया करते हैं ईसा के हाथों में …
Read More »आँचल बुनते रह जाओगे – राम अवतार त्यागी
मैं तो तोड़ मोड़ के बन्धन, अपने गाँव चला जाऊँगा, तुम आकर्षक सम्बंधों का, आँचल बुनते रह जाओगे। मेला काफी दर्शनीय है पर मुझको कुछ जमा नहीं है, इन मोहक कागजी खिलौनों में मेरा मन रमा नहीं है। मैं तो रंग मंच से अपने अनुभव गाकर उठ जाऊँगा लेकिन, तुम बैठे गीतों का गुँजन सुनते रह जाओगे। आँसू नहीं फला …
Read More »आज मुझसे दूर दुनियाँ – हरिवंश राय बच्चन
भावनाओं से विनिर्मित कल्पनाओं से सुसज्जित कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनियाँ आज मुझसे दूर दुनियाँ बात पिछली भूल जाओ दूसरी नगरी बसाओ प्रेमियों के प्रति रही है, हाय कितनी क्रूर दुनियाँ आज मुझसे दूर दुनियाँ वह समझ मुझको न पाती और मेरा दिल जलाती है चिता की राख कर में, माँगती सिंदूर दुनियाँ आज मुझसे दूर दुनियाँ …
Read More »विश्व सारा सो रहा है – हरिवंश राय बच्चन
हैं विचरते स्वप्न सुंदर, किंतु इनका संग तजकर, व्योम–व्यापी शून्यता का कौन साथी हो रहा है? विश्व सारा सो रहा है! भूमि पर सर सरित् निर्झर, किंतु इनसे दूर जाकर, कौन अपने घाव अंबर की नदी में धो रहा है? विश्व सारा सो रहा है! न्याय–न्यायधीश भू पर, पास, पर, इनके न जाकर, कौन तारों की सभा में दुःख अपना …
Read More »फूल – ओम प्रकाश बजाज
कितने सुंदर कितने प्यारे फूल सब के मन को भाते फूल, अद्भुत छटा बिखेरते फूल इन्दर्धनुष के हरे रंग के फूल। गजरा माला साज सजावट कितने उपयोग में आते फूल, महक मिठास चहुं ओर फैलाते अपना अस्तित्व बताते फूल। कई मौसमी कई बारहमासी किस्म – किस्म के आते फूल, मंद पवन में अटखेलिया करते जैसे कुछ कहना चाहते फूल। ~ …
Read More »आज मानव का सुनहला प्रात है – भगवती चरण वर्मा
आज मानव का सुनहला प्रात है, आज विस्मृत का मृदुल आघात है आज अलसित और मादकता भरे सुखद सपनों से शिथिल यह गात है मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो, आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो। आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है, आज कम्पित भ्रमित सा बातास है आज शतदल पर मुदित सा झूलता, कर रहा अठखेलियाँ हिमहास …
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