विदा देती एक दुबली बाँह-सी यह मेड़ अंधेरे में छूटते चुपचाप बूढ़े पेड़ ख़त्म होने को ना आएगी कभी क्या एक उजड़ी माँग-सी यह धूल धूसर राह? एक दिन क्या मुझी को पी जाएगी यह सफ़र की प्यास, अबुझ, अथाह? क्या यही सब साथ मेरे जाएँगे ऊँघते कस्बे, पुराने पुल? पाँव में लिपटी हुई यह धनुष-सी दुहरी नदी बींध देगी …
Read More »कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना – आनंद बक्षी
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई तू कौन है, तेरा नाम है क्या, सीता भी यहाँ बदनाम हुई फिर क्यूँ संसार की बातों से, भीग गये …
Read More »वो तेरे प्यार का ग़म, एक बहाना था सनम – आनंद बक्षी
वो तेरे प्यार का ग़म, एक बहाना था सनम अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी के दिल टूट गया ये ना होता तो कोई दूसरा ग़म होना था मैं तो वो हूँ जिसे हर हाल में बस रोना था मुस्कुराता भी अगर, तो छलक जाती नज़र अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी के दिल टूट गया… वरना क्या बात है …
Read More »आल्हाखंड: संयोगिता का अपहरण
आगे आगे पृथ्वीराज हैं‚ पाछे चले कनौजीराय। कबहुँक डोला जैयचंद छीनैं‚ कबहुँक पिरथी लेय छिनाय। जौन शूर छीनै डोला को‚ राखैं पांच कोस पर जाय। कोस पचासक डोला बढिगौ‚ बहुतक क्षत्री गये नशाय। लड़त भिड़त दोनों दल आवैं‚ पहुँचे सोरौं के मैदान। राजा जयचंद ने ललकारो‚ सुन लो पृथ्वीराज चौहान। डोला लै जइ हौ चोरी से‚ तुम्हरो चोर कहै है …
Read More »वक़्त नहीं
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में, पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं। दिन रात दौड़ती दुनिया में, ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं। सारे रिश्तों को तो हम मार चुके, अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं। सारे नाम मोबाइल में हैं, पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं। गैरों की क्या बात करें, जब अपनों के लिये ही …
Read More »अहिंसा – भारत भूषण अग्रवाल
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा सोच रहा था मैं मन ही मन : ‘हिटलर बेटा’ बड़ा मूर्ख है‚ जो लड़ता है तुच्छ क्षुद्र–मिट्टी के कारण क्षणभंगुर ही तो है रे! यह सब वैभव धन। अन्त लगेगा हाथ न कुछ दो दिन का मेला। लिखूं एक खत‚ हो जा गांधी जी का चेला वे तुझ को बतलाएंगे आत्मा …
Read More »आज्ञा – राजीव कृष्ण सक्सेना
प्रज्वलित किया जब मुझे कार्य समझाया पथिकों को राह दिखाने को दी काया मैंनें उत्तरदाइत्व सहज ही माना जो कार्य मुझे सौंपा था उसे निभाना जुट गया पूर्ण उत्साह हृदय में भर के इस घोर कर्म को नित्य निरंतर करते जो पथिक निकल इस ओर चले आते थे मेरी किरणों से शक्ति नई पाते थे मेरी ऊष्मा उत्साह नया भरती …
Read More »जिन-दर्शन – सौरभ जैन ‘सुमन’
नर से नारायण बनने की जिनमे इच्छा होती है। हर क्षण उनके जीवन में एक नई परीक्षा होती है॥ ऐसे वैसे जीव नही जो दुनिया से तर जाते हैं। जग में रहके जग से जीते नाम अमर कर जाते हैं॥ खुश किस्मत हूँ जैन धरम में जनम मिला। खुश किस्मत हूँ महावीर का मनन मिला॥ मनन मिला है चोबीसों भगवानो …
Read More »पुराना इतवार
आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर पुराना इतवार मिला है… जाने क्या ढूँढने खोला था उन बंद दरवाजों को, अरसा बीत गया सुने, उन धुंधली आवाजों को, यादों के सूखे बागों में, जैसे एक गुलाब खिला है। आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर, पुराना इतवार मिला है… एक भूरे रंग की पुरानी कॉपी, नीली लकीरों वाली, कुछ बहे …
Read More »The World Is Mine
Today, upon a bus, I saw a very beautiful woman and wished I were as beautiful. When suddenly she rose to leave, I saw her hobble down the aisle. She had one leg and used a crutch. But as she passed, she passed a smile. Oh, God, forgive me when I whine. I have two legs; the world is mine. …
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