अब तुम रूठो: गोपाल दास नीरज

अब तुम रूठो: चिंतन पर मजबूर करतीं गोपाल दास नीरज की कविता

For a thinking man, there are moments and phases when he realizes that his apprehensions of non-fulfillment of his desires are the cause of his constant prostration. Here is a rebellion from the well known poet Neeraj.

अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते जलते,
मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते चलते,
गाते गाते गेय हो गया गायक ही खुद
सत्य स्वप्न ही हुआ स्वयं को छलते छलते,
डूबे जहां कहीं भी तरी वहीं अब तट है,
अब चाहे हर लहर बने मंझधार मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

अब पंछी को नहीं बसेरे की है आशा,
और बागबां को न बहारों की अभिलाषा,
अब हर दूरी पास, दूर है हर समीपता,
एक मुझे लगती अब सुख दुःख की परिभाषा,
अब न ओठ पर हंसी, न आंखों में हैं आंसू,
अब तुम फेंको मुझ पर रोज अंगार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

अब मेरी आवाज मुझे टेरा करती है,
अब मेरी दुनियां मेरे पीछे फिरती है,
देखा करती है, मेरी तस्वीर मुझे अब,
मेरी ही चिर प्यास अमृत मुझ पर झरती है,
अब मैं खुद को पूज, पूज तुमको लेता हूं,
बन्द रखो अब तुम मंदिर के द्वार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

~ गोपाल दास नीरज

आपको “गोपाल दास नीरज” जी की यह कविता “अब तुम रूठो” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

Check Also

Hanuman Chalisa - Tulsidas

Hanuman Chalisa: Forty chaupais – Hindu devotional hymn

Hanuman Chalisa (हनुमान चालीसा; literally Forty chaupais on Hanuman) is a Hindu devotional hymn (stotra) …