होली का असली आनंद: दर्शन सिंह 'आशट'

होली का असली आनंद: झुग्गी झोपड़ी के रहने वाले बच्चों के साथ मनाई होली

कल होली का त्यौहार आने वाला था। चौथी कक्षा में पढ़ता राहुल सोच रहा था, “इस बार मनु के साथ ऐसी होली खेलूंगा कि वह याद रखेगा – गोबर होली”।

न जाने वह मोबाइल पर किस-किस दोस्त के साथ कैसे-कैसे होली खेलने की योजनाएं बना रहा था। मम्मी को उसकी शरारत भर योजना का पता चल चुका था। राहुल को फिजूल खर्ची करने का बेहद शौक था। जब भी उसे जेब-खर्च मिलता, वह केवल दो-चार दिन में ही आधी छुट्टी के समय सारे रुपए उड़ा देता था।

होली का असली आनंद: दर्शन सिंह ‘आशट’

इस बार उसे जो जेब-खर्च मिला, उसने उसे खर्च करने की योजना पहले से ही बना ली थी, “दो सौ रुपए को पिचकारी, एक सौ रुपए के रंग, पचास रुपए के गुब्बारे और सौ रुपए के…।”

शाम को जब वह tuition पढ़कर लौट रहा था तो पार्क के पास उसे सडक पर एक पर्स पड़ा दिखाई दिया। उसने पर्स उठाया। खोलकर
देखा तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। उसमें पांच-पांच सौ रुपए के चार नोट थे।

राहुल ने इधर-उधर देखा और मन ही मन किलकारी लगाई, “अब आएगा मजा।”

उसके कदम घर की ओर तेजी से बढ़ने लगे।

“मम्मा देखिए, मैं मालामाल हो गया हूं। अब मेरी होली देखना। खूब जमकर खेलूंगा। दोस्त देखते ही रह जाएंगे । किसी के पास इतने रंग नहीं होंगे। सबसे बड़ी पिचकारी मेरी ही होगी।”

राहुल की मम्मी ने पर्स देखा। नोट निकाल कर गिने, पूरे दो हजार रुपए थे।

“तुमको इस पर्स में कुछ और भी मिला है क्या?” मम्मी ने पूछ।

राहुल ने थोड़ा हैरानी से पूछा, “क्या मतलब मम्मा?”

मम्मी बोलीं, “मेरा मतलब, जिस व्यक्ति का यह पर्स है, क्या उसका कोई पहचान-पत्र या कोई और कागज-पत्र भी है पर्स की किसी जेब में?”

राहुल बोला, “नहीं, और कुछ नहीं है। मैंने इस पर्स को अंदर-बाहर की सभी जेबें देख ली हैं।”

मम्मी बोलीं, “ओह! जिस बेचारे का होगा, उसका तो नुकसान हो गया न? अब उसका पता भी नहीं चल सकता।”

मम्मी कुछ देर तक सोचती रहीं। फिर बोलीं, ”हां, इन रुपयों का किसी और की ख़ुशी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।”

“वह कैसे मम्मी?” राहुल ने उत्सुकता से पूछ।

“चलो बाजार चलें।” मम्मी ने कहा। राहुल हैरानी से मम्मी की गतिविधि देख रहा था। मम्मी उसे जो-जो कह रही थीं, राहुल वैसा ही कर रहा था। राहुल ने मम्मी के कहने पर पचास-पचास रुपए वाली बीस पिचकारियां खरीदीं। अलग-अलग किस्म के रंग और गुब्बारों के पैकेट। कुछ चॉकलेट भी।

होली का दिन आ गया। सुबह होते हो राहुल मम्मी के साथ रेलवे लाईन के पास झुग्गी-झोपड़ियों के पास आ गया। झुग्गियां ज्यादा दूर नहीं थीं।

राहुल और उसकी मम्मी ने झुग्गी के सभी बच्चों को बुलाया। फिर सभी को एक-एक पिचकारी सौंप दी। गुलाल भी और गुब्बारे व चॉकलेट भी। राहुल ने अपने अन्य दोस्तों को भी वहां बुला लिया था। दोपहर तक राहुल और उसके दोस्त झुग्गी-झापड़ी वाले बच्चों
के साथ होली का मजा लेते रहे।

राहुल ने देखा, मम्मी हाथ में एक बालटी लिए आ रही है। पास आईं तो वातावरण में मीठे चावलों की महक फैल गई।

मम्मी और राहुल आपस में मंद-मंद मुसकुरा रहे थे। मम्मी ने राहुल से कहा, “बेटा, तुम अपने दोस्तों से शरारत भरी होली खेलने की बातें कर रहे थे न। अब बताओ, मन-मुटाब पैदा करने वाली वह होली ठीक होती या यह होली ठीक है?”

राहुल ने मम्मी के चेहरे पर गुलाल लगाते हुए कहा, “मेरी बैस्ट मम्मा।”

सभी सॉंधी-सोंधी खुशबू वाले मीठे चाबलों का आनंद लेने लेगे।

~ “होली का असली आनंद” story by “दर्शन सिंह ‘आशट’

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