Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

जो हवा में है – उमाशंकर तिवारी

जो हवा में है, लहर में है क्यों नहीं वह बात, मुझमें है? शाम कन्धों पर लिए अपने ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना रोशनी का हमसफ़र होना उम्र की कैंडिल का जलना आग जो जलते सफ़र में है क्यों नहीं वह बात, मुझमें है? रोज़ सूरज की तरह उगना शिखर पर चढ़ना, उतर जाना घाटियों में रंग भर जाना फिर सुरंगों से गुज़र जाना …

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जीकर देख लिया – शिव बहादुर सिंह भदौरिया

जीकर देख लिया जीने में कितना मरना पड़ता है अपनी शर्तों पर जीने की एक चाह सबमें रहती है किन्तु ज़िन्दगी अनुबंधों के अनचाहे आश्रय गहती है क्या-क्या कहना क्या-क्या सुनना क्या-क्या करना पड़ता है समझौतों की सुइयाँ मिलतीं धन के धागे भी मिल जाते संबंधों के फटे वस्त्र तो सिलने को हैं सिल भी जाते सीवन, कौन कहाँ कब उधड़े …

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कवि कभी मरा नहीं करता – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

कवि कभी मरा नहीं करता सो जाते हैं अहसास मातृप्राय हो जाते हैं वो तंतु जो सोचा करते हैं सूरज से आगे की सागर से नीचे की वो सोच, जिसने मेघदूत को जन्म दिया वो कभी मरा नहीं करती मर जाते है वो अरमान जब ध्वस्त होते हैं सपनों के किले कवि कभी मरा नहीं करता वह ज़िंदा रखता है …

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कस्बे की शाम – धर्मवीर भारती

झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई खेतों में अन्हियारी घिर आई पश्चिम की सुनहरिया घुंघराई टीलों पर, तालों पर इक्के दुक्के अपने घर जाने वाले पर धीरे धीरे उतरी शाम ! आँचल से छू तुलसी की थाली दीदी ने घर की ढिबरी बाली जम्हाई ले लेकर उजियाली, जा बैठी ताखों में घर भर के बच्चों की आँखों में धीरे धीरे उतरी शाम …

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मंगलम कोसलेन्ड़ृअय

मंगलम कोसलेन्ड़ृअय — Kosalendraya , Mahaneeya Gunabhdhaye Kosalendraya , Mahaneeya Gunabhdhaye, Chakravarthi Thanujaaya Sarva Bhoumaya Mangalam. 1 (Let good happen to , Rama , Who is the king of Kosala, And the ocean of good qualities. Let good happen to Rama, Who is son of emperor Dasaratha, And who is a very great king.) Vedavedantha Vedhyaya , Megha Shyamala Moorthaye, …

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क्यों ऐसा मन में आता है – दिविक रमेश

जब भी देखूं कोई ठिठुरता, मन में बस ऐसा आता है। ढाँपू उसको बन कर कम्बल, सोच के मन खुश हो जाता है। मत बनूँ बादाम या पिस्ता, मूंगफली ही मैं बन जाऊं। जी में तो यह भी आता है, कड़क चाय बन उनको भाऊं। बन कर थोड़ी धुप सुहानी, उनके आँगन में खिल जाऊं। गरम-गरम कर उसके तन को, …

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किताबें कुछ कहना चाहती हैं – सफ़दर हाश्मी

किताबें करती हैं बातें बीते ज़मानों की दुनिया की, इंसानों की आज की, कल की एक-एक पल की ख़ुशियों की, ग़मों की फूलों की, बमों की जीत की, हार की प्यार की, मार की क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें? किताबें कुछ कहना चाहती हैं। तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥ किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं किताबों में खेतियाँ …

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क्यों नहीं देखते – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

जब रास्ता तुम भटक जाते हो क्यों नहीं देखते इन तारों की तरफ ये तो विद्यमान हैं हर जगह इन्हे तो पता हैं सारे मार्ग जब आक्रोश उत्त्पन्न होता है तुम्हारे हृदय में वेदना कसकती है और क्रोध किसी को जला डालना चाहता है क्यों नहीं देखते सूरज की तरफ ये भी नाराज़ है बरसों से पता नहीं किस पर …

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क्यों – श्रीनाथ सिंह

पूछूँ तुमसे एक सवाल, झटपट उत्तर दो गोपाल मुन्ना के क्यों गोरे गाल? पहलवान क्यों ठोके ताल? भालू के क्यों इतने बाल? चले सांप क्यों तिरछी चाल? नारंगी क्यों होती लाल? घोड़े के क्यों लगती नाल? झरना क्यों बहता दिन रात? जाड़े में क्यों कांपे गात? हफ्ते में क्यों दिन हैं सात? बुड्ढों के क्यों टूटे दांत? ढ़म ढ़म ढ़म …

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देश की मिट्टी – शम्भू नाथ

इस मिट्टी से बैर करो मत, ये मिट्टी ही सोना है। इसी में हंसना इसी में गाना, इसी में यारों रोना है। इस मिट्टी में जन्म लिये हो, इसी मिट्टी में रहना है। इसी में खा के इसी में जा के, इसी में वापस आना है। इससे प्रेम करोगे प्यारे, नाम अमर हो जाना है। इसी में सपना इसी में …

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