Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

प्यारे पापा सच्चे पापा – प्रेरणादायी कविता

प्यारे पापा सच्चे पापा - प्रेरणादायी कविता

प्यारे पापा सच्चे पापा, बच्चों के संग बच्चे पापा। करते हैं पूरी हर इच्छा, मेरे सबसे अच्छे पापा॥ पापा ने ही तो सिखलाया, हर मुश्किल में बन कर साया। जीवन जीना क्या होता है, जब दुनिया में कोई आया॥ उंगली को पकड़ कर सिखलाता, जब पहला क़दम भी नहीं आता। नन्हे प्यारे बच्चे के लिए, पापा ही सहारा बन जाता॥ …

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Father’s Day Hindi Film Song कुछ कहना है मेरी भूल हुई

Father's Day Hindi Film Song कुछ कहना है मेरी भूल हुई

कुछ कहना है मेरी भूल हुई, मेरी बात सुनो ओ पापा –2 नादाँ हूँ मैं तुम्हे ना समझा मुझे माफ़ करो ओ पापा मुझसे कोई भूल होगी ना कभी –2 आँखों में अब आंसूं ना लाना कुछ कहना है मेरी भूल हुई, मेरी बात सुनो ओ पापा मैंने बस तुम्हे दुःख ही दुःख दिया तुमने जो चाहा मैंने ना किया मुझको …

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हद हो गई शैतानी की – नटखट बच्चों की बाल-कविता

हद हो गई शैतानी की - नटखट बच्चों की बाल-कविता

टिंकू ने मनमानी की, हद हो गई शैतानी की। सोफे का तकिया फेका, पलटा दिया नया स्टूल। मारा गोल पढाई से, आज नहीं पहुंचे स्कूल। फोड़ी बोतल पानी की। हद हो गई शैतानी की। हुई लड़ाई टिन्नी से, उसकी नई पुस्तक फाड़ी। माचिस लेकर घिस डाली, उसकी एक- एक काड़ी। माला तोड़ी नानी की। हद हो गई शैतानी की। ज्यादा …

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पेड़ सदा शिक्षा देता है – शिक्षाप्रद हिंदी कविता

पेड़ सदा शिक्षा देता है - शिक्षाप्रद हिंदी कविता

पेड़ सदा शिक्षा देता है जीव जंतुओं की ही भांति, वृक्षों में जीवन होता है। कटने पर डाली रोती है, छटने पर पत्ता रोता है। जैसे हम बातें करते हैं, लता वृक्ष भी बतयाते हैं, जैसे हम भोजन करते हैं, सभी पेड़ खाना खाते हैं। जैसे चोट‌ हमें दुख देती, पेड़ों को भी दुख होता है। जैसे श्वांस रोज हम …

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माहिष्मती साम्राज्यम्: बाहुबली गान – मनोज मुन्ताशिर

माहिष्मती साम्राज्यम्: बाहुबली गान - मनोज मुन्ताशिर

माहिश्मती साम्राज्यम् सर्वोत्तम् अजेयम् दसो दिशाएं आगे आ सब इसको करते प्रणाम खुशहाली वैभवशाली समृद्धियाँ निराली धन्य धन्य है यहाँ प्रजा शक्ति का ये स्वर्ग था घन गरज जो किलके यहाँ दिग दिगंत में है कहाँ शीश तो यहाँ झुका ज़रा यशास्वीनी है ये धरा महिष्मति की पताका सदा यूँही गगन चूमे अश्व दो और सूर्य देव मिलके स्वर्ग सिंघासन …

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शरद की हवा – गिरिधर गोपाल जी द्वारा शब्द चित्रण

शरद की हवा - गिरिधर गोपाल जी द्वारा शब्द चित्रण

शरद की हवा ये रंग लाती है, द्वार–द्वार, कुंज–कुंज गाती है। फूलों की गंध–गंध घाटी में बहक–बहक उठता अल्हड़ हिया हर लता हरेक गुल्म के पीछे झलक–झलक उठता बिछुड़ा पिया भोर हर बटोही के सीने पर नागिन–सी लोट–लोट जाती है। रह–रह टेरा करती वनखण्डी दिन–भर धरती सिंगार करती है घण्टों हंसिनियों के संग धूप झीलों में जल–विहार करती है दूर …

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सिद्धार्थ ही होता… – रश्मि प्रभा

सिद्धार्थ ही होता... - रश्मि प्रभा

मेरे महाभिनिष्क्रमण की ताकत मेरे पिता नहीं थे उन्होंने तो मेरे उद्विग्न मन को बाँधने का प्रयास किया निःसंदेह… एक पिता के रूप में उनके कदम सराहनीय थे पर यशोधरा के उत्तरदायी बने! मैं जीवन की गुत्थियों में उलझा था मैं प्रेम को क्या समझता मेरी छटपटाहट में तो दो रिश्ते और जुड़ गए… यशोधरा मौन मेरी व्याकुलता की सहचरी …

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मैं भारत का नागरिक हूँ – हास्य-व्यंग कविता

मैं भारत का नागरिक हूँ - हास्य-व्यंग कविता

मैं भारत का नागरिक हूँ, मुझे लड्डू दोनों हाथ चाहिये। बिजली मैं बचाऊँगा नहीं, बिल मुझे माफ़ चाहिये। पेड़ मैं लगाऊँगा नहीं, मौसम मुझको साफ़ चाहिये। शिकायत मैं करूँगा नहीं, कार्रवाई तुरंत चाहिये। बिना लिए कुछ काम न करूँ, पर भ्रष्टाचार का अंत चाहिये। घर-बाहर कूड़ा फेकूं, शहर मुझे साफ चाहिये। काम करूँ न धेले भर का, वेतन लल्लनटाॅप चाहिये। …

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सुबह सुबह से ही रोजाना – प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सुबह सुबह से ही रोजाना - प्रभुदयाल श्रीवास्तव

हार्न‌ बजाकर बस का आना, सुबह सुबह से ही रोज़ाना। चौराहों पर सजे सजाये, सारे बच्चे आँख गड़ाये, नज़र सड़क पर टिकी हुई है, किसी तरह से बस आ जाये, जब आई तो मिला खज़ाना, सुबह सुबह से ही रोज़ाना। सुबह सुबह सूरज आ जाता, छत आँगन से चोंच लड़ाता, कहे पवन से नाचो गाओ, मंदिर में घंटा बजवाता, कभी …

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गिरिजा कुमार माथुर जी द्वारा शब्द-चित्रण – थकी दुपहरी

गिरिजा कुमार माथुर जी द्वारा शब्द-चित्रण - थकी दुपहरी

थकी दुपहरी में पीपल पर काग बोलता शून्य स्वरों में फूल आखिरी ये बसंत के गिरे ग्रीष्म के ऊष्म करों में धीवर का सूना स्वर उठता तपी रेत के दूर तटों पर हल्की गरम हवा रेतीली झुक चलती सूने पेड़ों पर अब अशोक के भी थाले में ढेर ढेर पत्ते उड़ते हैं ठिठका नभ डूबा है रज में धूल भरी …

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