फिर एक बार - महादेवी वर्मा

फिर एक बार: महादेवी वर्मा की देशभक्ति कविता

Here is a poem by the well-known poetess Mahadevi Varma, showing her deep devotion and appreciation of the motherland.

मैं कम्पन हूँ तू करुण राग
मैं आँसू हूँ तू है विषाद
मैं मदिरा तू उसका खुमार
मैं छाया तू उसका अधार
मेरे भारत मेरे विशाल
मुझको कह लेने दो उदार
फिर एक बार, बस एक बार

कहता है जिसका व्यथित मौन
‘हम सा निष्फल है आज कौन’
निर्थन के धन सी हास–रेख
जिनकी जग ने पायी न देख
उन सूखे ओठों के विषाद
में मिल जाने दो है उदार
फिर एक बार, बस एक बार

जिन पलकों में तारे अमोल
आँसू से करते हैं किलोल
जिन आँखों का नीरव अतीत
कहता ‘मिटना है मधुर जीत’
उस चिंतित चितवन में विहास
बन जाने दो मुझको उदार
फिर एक बार, बस एक बार

फूलों सी हो पल में मलीन
तारों सी सूने में विलीन
ढुलती बूँदों से ले विराग
दीपक से जलने का सुहाग
अन्तरतम की छाया समेट
मैं तुझमें मिट जाऊँ उदार!
फिर एक बार, बस एक बार

~ महादेवी वर्मा

आपको “महादेवी वर्मा” यह कविता “फिर एक बार” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: admin@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!

Check Also

Jesus Christ

A Good Friday: Short English Poetry on Crucifixion of Jesus

A Good Friday: Christina Georgina Rossetti Am I a stone, and not a sheep, That I …