Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

विदा की घड़ी है – राजनारायण बिसरिया

विदा की घड़ी है कि ढप ढप ढपाढप बहे जा रहे ढोल के स्वर पवन में, वधू भी जतन से सजाई हुई–सी लजाई हुई–सी, पराई हुई–सी, खड़ी है सदन में, कि घूँघट छिपाए हुए चाँद को है न जग देख पाता मगर लाज ऐसी, कि पट ओट में भी पलक उठ न पाते, हृदय में जिसे कल्पना ने बसाया नयन …

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हल्दीघाटी: युद्ध के लिये प्रयाण – श्याम नारायण पाण्डेय

डग डग डग रण के डंके मारू के साथ भयद बाजे, टप टप टप घोड़े कूद पड़े कट कट मतंग के रद बाजे कल कल कर उठी मुगल सेना किलकार उठी, ललकार उठी असि म्यान विवर से निकल तुरत अहि नागिन सी फुफकार उठी फर फर फर फर फर फहर उठा अकबर का अभिमानी निशान बढ़ चला कटक ले कर …

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हल्दीघाटी: युद्ध – श्याम नारायण पाण्डेय

निर्बल बकरों से बाघ लड़े भिड़ गये सिंह मृग छौनों से घोड़े गिर पड़े, गिरे हाथी पैदल बिछ गये बिछौनों से हाथी से हाथी जूझ पड़े भिड़ गये सवार सवारों से घोड़े पर घोड़े टूट पड़े तलवार लड़ी तलवारों से हय रुण्ड गिरे, गज मुण्ड गिरे कट कट अवनी पर शुण्ड गिरे लड़ते लड़ते अरि झुण्ड गिरे भू पर हय …

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स्त्री बनाम इस्तरी – जेमिनी हरियाणवी

एक दिन एक पड़ोस का छोरा मेरे तैं आके बोल्या ‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे द्यो’ मैं चुप्प वो फेर कहन लागा : ‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे द्यो ना?’ जब उसने यह कही दुबारा मैंने अपनी बीरबानी की तरफ कर्यौ इशारा : ‘ले जा भाई यो बैठ्यी।’ छोरा कुछ शरमाया‚ कुछ मुस्काया फिर कहण लागा : ‘नहीं चाचा जी‚ …

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क्या कहा? – जेमिनी हरियाणवी

आप हैं आफत‚ बलाएं क्या कहा? आपको हम घर बुलाएं‚ क्या कहा? खा रही हैं देश को कुछ कुर्सियां‚ हम सदा धोखा ही खाएं‚ क्या कहा? ऐसे वैसे काम सारे तुम करो‚ ऐसी–तैसी हम कराएं‚ क्या कहा? आज मंहगाई चढ़ी सौ सीढ़ियां‚ चांद पर खिचड़ी पकाएं‚ क्या कहा? आप ताजा मौसमी का रस पियें‚ और हम कीमत चुकाएं‚ क्या कहा? …

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नाव चलती रही – वीरबाला भावसार

नाव चलती रही, सांझ ढलती रही, उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही। कौन सी रागनी बज रही है यहां देह से अजनबी प्राण से अजनबी क्या अजनबी रागनी के लिये जिंदगी की त्वरा यूँ मचलती रही नाव चलती रही, सांझ ढलती रही, उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही। रुक गए यूँ कदम मुद के देखूं जरा है वहां …

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मन पाखी टेरा रे – वीरबाला भावसार

रुक रुक चले बयार, कि झुक झुक जाए बादल छाँह कोई मन सावन घेरा रे, कोई मन सावन घेरा रे ये बगुलों की पांत उडी मन के गोले आकाश कोई मन पाखी टेरा रे कोई मन पाखी टेरा रे कौंध कौंध कर चली बिजुरिया, बदल को समझने बीच डगर मत छेड़ लगी है, पूर्व हाय लजाने सहमे सकुचे पांव, कि …

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मन ऐसा अकुलाया – वीरबाला भावसार

एक चिरैया बोले, हौले आँगन डोले मन ऐसा अकुलाया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया। चन्दन धुप लिपा दरवाज़ा, चौक पूरी अँगनाई बड़े सवेरे कोयल कुहुकी, गूंज उठी शहनाई भोर किरण क्या फूटी, मेरी निंदिया टूटी मन ऐसा अकुलाया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया। झर झर पात जहर रहे मन के, एकदम सूना सूना कह तो देती मन ही पर, दुःख …

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वो सुबह कभी तो आएगी – साहिर लुधियानवी

वो सुबह कभी तो आएगी। इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा जब अंबर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी वो सुबह कभी तो आएगी। जिस सुबह की खातिर युग युग से, हम सब मर मर कर जीते हैं जिस सुबह की अनृत की धुन …

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कभी कभी – साहिर लुधियानवी

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जिंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में गुज़रने पाती तो शादाब भी हो सकती थी ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है तेरी नज़र की शुआओ में खो भी सकती थी अजब न था कि मैं बेगाना–ऐ–आलम रहकर तेरे जमाल की रानाइयों में खो रहता तेरा गुदाज़ बदन‚ तेरी नीम–बाज़ …

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