Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

हिंदी दोहे गणतंत्र के – डॉ. शरद नारायण खरे

भारत के गणतंत्र का, सारे जग में मान। छह दशकों से खिल रही, उसकी अद्भुत शान॥ सब धर्मों को मान दे, रचा गया इतिहास। इसीलिए हर नागरिक, के अधरों पर हास॥ प्रजातंत्र का तंत्र यह, लिये सफलता-रंग। जात-वर्ग औ क्षेत्र का, भेद नहीं है संग॥ पांच वर्ष में हो रहा, संविधान का यज्ञ। शांतिपूर्ण ढंग देखकर, चौंके सभी सुविज्ञ॥ भारत …

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हिन्दुस्तान के लिए – मनोहर लाल ‘रत्नम’

कहीं हिन्दू सिख मुसलमान के लिए, कहीं छोटी और कहीं कृपाण के लिए। दंगो से तो देखा मेरा देश जल रहा- भैया कुछ तो सोचो हिन्दुस्तान के लिए॥ चिराग घर के के ही जल रह यहाँ, मदारी अपनी ढपलियां बजा रहे यहाँ। द्वेष वाली भावना के विष को घोलके- देश कि अखंडता वो खा रहे यहाँ॥ भाषा-भाषी झगडे जुबान के …

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हल्दीघाटी: अष्टादश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

अष्टादश सर्ग : मेवाड़ सिंहासन यह एकलिंग का आसन है, इस पर न किसी का शासन है। नित सिहक रहा कमलासन है, यह सिंहासन सिंहासन है ॥१॥ यह सम्मानित अधिराजों से, अर्चत है, राज–समाजों से। इसके पद–रज पोंछे जाते भूपों के सिर के ताजों से ॥२॥ इसकी रक्षा के लिए हुई कुबार्नी पर कुबार्नी है। राणा! तू इसकी रक्षा कर …

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हल्दीघाटी: सप्तदश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

सप्तदश सर्ग: सगफागुन था शीत भगाने को माधव की उधर तयारी थी। वैरी निकालने को निकली राणा की इधर सवारी थी ॥१॥ थे उधर लाल वन के पलास, थी लाल अबीर गुलाल लाल। थे इधर क्रोध से संगर के सैनिक के आनन लाल–लाल ॥२॥ उस ओर काटने चले खेत कर में किसान हथियार लिये। अरि–कण्ठ काटने चले वीर इस ओर …

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हल्दीघाटी: षोडश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

षोडश सर्ग: सगथी आधी रात अंधेरी तम की घनता थी छाई। कमलों की आंखों से भी कुछ देता था न दिखाई ॥१॥ पर्वत पर, घोर विजन में नीरवता का शासन था। गिरि अरावली सोया था सोया तमसावृत वन था ॥२॥ धीरे से तरू के पल्लव गिरते थे भू पर आकर। नीड़ों में खग सोये थे सन्ध्या को गान सुनाकर ॥३॥ …

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हल्दीघाटी: चतुर्दश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

चतुर्दश सर्ग: सगरजनी भर तड़प–तड़पकर घन ने आंसू बरसाया। लेकर संताप सबेरे धीरे से दिनकर आया ॥१॥ था लाल बदन रोने से चिन्तन का भार लिये था। शव–चिता जलाने को वह कर में अंगार लिये था ॥२॥ निशि के भीगे मुरदों पर उतरी किरणों की माला। बस लगी जलाने उनको रवि की जलती कर–ज्वाला ॥३॥ लोहू जमने से लोहित सावन …

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हल्दीघाटी: त्रयोदश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

त्रयोदश सर्ग: सगजो कुछ बचे सिपाही शेष, हट जाने का दे आदेश। अपने भी हट गया नरेश, वह मेवाड़–गगन–राकेश ॥१॥ बनकर महाकाल का काल, जूझ पड़ा अरि से तत्काल। उसके हाथों में विकराल, मरते दम तक थी करवाल ॥२॥ उसपर तन–मन–धन बलिहार झाला धन्य, धन्य परिवार। राणा ने कह–कह शत–बार, कुल को दिया अमर अधिकार ॥३॥ हाय, ग्वालियर का सिरताज, …

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हल्दीघाटी: द्वादश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

द्वादश सर्ग: सगनिबर् ल बकरों से बाघ लड़े, भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से। घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी, पैदल बिछ गये बिछौनों से ॥१॥ हाथी से हाथी जूझ पड़े, भिड़ गये सवार सवारों से। घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े, तलवार लड़ी तलवारों से ॥२॥ हय–रूण्ड गिरे, गज–मुण्ड गिरे, कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे। लड़ते–लड़ते अरि झुण्ड गिरे, भू पर हय …

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हल्दीघाटी: एकादश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

एकादश सर्ग: सगजग में जाग्रति पैदा कर दूं, वह मन्त्र नहीं, वह तन्त्र नहीं। कैसे वांछित कविता कर दूं, मेरी यह कलम स्वतन्त्र नहीं ॥१॥ अपने उर की इच्छा भर दूं, ऐसा है कोई यन्त्र नहीं। हलचल–सी मच जाये पर यह लिखता हूं रण षड््यन्त्र नहीं ॥२॥ ब्राह्मण है तो आंसूं भर ले, क्षत्रिय है नत मस्तक कर ले। है …

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हल्दीघाटी: दशम सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

दशम सर्ग: सगनाना तरू–वेलि–लता–मय पर्वत पर निर्जन वन था। निशि वसती थी झुरमुट में वह इतना घोर सघन था ॥१॥ पत्तों से छन–छनकर थी आती दिनकर की लेखा। वह भूतल पर बनती थी पतली–सी स्वर्णिम रेखा ॥२॥ लोनी–लोनी लतिका पर अविराम कुसुम खिलते थे। बहता था मारूत, तरू–दल धीरे–धीरे हिलते थे ॥३॥ नीलम–पल्लव की छवि से थी ललित मंजरी–काया। सोती …

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