उठो धरा के अमर सपूतो - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

उठो धरा के अमर सपूतो: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।
जन जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।

नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई।
युग युग के मुरझे सुमनों में,
नई नई मुसकान भरो।

डाल डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन गुन गुन गुन करते भौंरे
मस्त हुए मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नवगान भरो।

कली कली खिल रही इधर
वह फूल फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुंजित जग उद्यान करो।

सरस्वती का पावन मंदिर
यह संपत्ति तुम्हारी है।
तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।

उठो धरा के अमर सपूतो,
पुनः नया निर्माण करो।

~ द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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