Dwarika Prasad Maheshwari

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी (१ दिसम्बर १९१६ - २९ अगस्त १९९८) हिन्दी के साहित्यकार थे। उनका जन्म आगरा के रोहता में हुआ था। शिक्षा और कविता को समर्पित द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जीवन बहुत ही चित्ताकर्षक और रोचक है। उनकी कविता का प्रभाव सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कृष्ण विनायक फड़के ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में प्रकट किया कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी शवयात्रा में माहेश्वरी जी का बालगीत 'हम सब सुमन एक उपवन के' गाया जाए। फड़के जी का मानना था कि अंतिम समय भी पारस्परिक एकता का संदेश दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने अपनी होर्डिगों में प्राय: सभी जिलों में यह गीत प्रचारित किया और उर्दू में भी एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था, 'हम सब फूल एक गुलशन के', लेकिन वह दृश्य सर्वथा अभिनव और अपूर्व था जिसमें एक शवयात्रा ऐसी निकली जिसमें बच्चे मधुर धुन से गाते हुए चल रहे थे, 'हम सब सुमन एक उपवन के'। किसी गीत को इतना बड़ा सम्मान, माहेश्वरी जी की बालभावना के प्रति आदर भाव ही था। उनका ऐसा ही एक और कालजयी गीत है- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। उन्होंने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त पांच पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं। उन्होंने अनेक काव्य संग्रह और खंड काव्यों की भी रचना की। बच्चों के कवि सम्मेलन का प्रारंभ और प्रवर्तन करने वालों के रूप में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का योगदान अविस्मरणीय है। वह उप्र के शिक्षा सचिव थे। उन्होंने शिक्षा के व्यापक प्रसार और स्तर के उन्नयन के लिए अनथक प्रयास किए। उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनाकर उन्हे याद करते रहने के उपक्रम दिए। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महाकवि पर उन्होंने बड़े जतन से वृत्त चित्र बनाया। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन उसे उन्होंने पूरा किया। बड़ों के प्रति आदर-सम्मान का भाव माहेश्वरी जी जितना रखते थे उतना ही प्रेम उदीयमान साहित्यकारों को भी देते थे। उन्होंने आगरा को अपना काव्यक्षेत्र बनाया। केंद्रीय हिंदी संस्थान को वह एक तीर्थस्थल मानते थे। इसमें प्राय: भारतीय और विदेशी हिंदी छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का ज्ञान दिलाने में माहेश्वरी जी का अवदान हमेशा याद किया जाएगा। वह गृहस्थ संत थे।

हम सब सुमन एक उपवन के: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

हम सब सुमन एक उपवन के - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

हम सब सुमन एक उपवन के एक हमारी धरती सबकी, जिसकी मिट्टी में जन्मे हम। मिली एक ही धूप हमें है, सींचे गए एक जल से हम। पले हुए हैं झूल-झूल कर, पलनों में हम एक पवन के। हम सब सुमन एक उपवन के॥ रंग रंग के रूप हमारे, अलग-अलग है क्यारी-क्यारी। लेकिन हम सबसे मिलकर ही, इस उपवन की शोभा सारी। एक हमारा माली …

Read More »

इतने ऊँचे उठो: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

इतने ऊँचे उठो - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है। देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से जाति भेद की, धर्म-वेश की काले गोरे रंग-द्वेष की ज्वालाओं से जलते जग में इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है। नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो …

Read More »

इतने ऊँचे उठो: द्वारिका प्रसाद महेश्वरी

इतने ऊँचे उठो - द्वारिका प्रसाद महेश्वरी

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है। देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से जाति भेद की, धर्म-वेश की काले गोरे रंग-द्वेष की ज्वालाओं से जलते जग में इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥ नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो …

Read More »

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। प्रात हो कि रात हो संग हो न …

Read More »

उठो धरा के अमर सपूतो: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

उठो धरा के अमर सपूतो - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

उठो धरा के अमर सपूतो पुनः नया निर्माण करो। जन जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो। नया प्रात है, नई बात है, नई किरण है, ज्योति नई। नई उमंगें, नई तरंगे, नई आस है, साँस नई। युग युग के मुरझे सुमनों में, नई नई मुसकान भरो। डाल डाल पर बैठ विहग कुछ नए स्वरों में …

Read More »