भूख – आनन्द प्रिय शर्मा

बाक़ी दिनों की तरह आज भी मै अपना काम ख़त्म करके फेक्टरी से घर के लिए लौट रहा था। पिछले कुछ दोनों से नए प्रोजेक्ट की जद्दोजहद जो मेनेजमेंट के साथ चल रही थी आखिरकार ख़त्म हुई, उस पर खुशी ये की जीत मेरी हुई।

अपना पसंदीदा गीत गुनगुनाते, बाजार से गुजरते हुए नजरें मिठाई की दूकान पर टिक गई और ख्याल आया मंजू बिटिया की मिठाई वाली फरमाइश रोज भूल जाता हूँ। कार रोककर घर में सब की पसंद की मिठाइयाँ पेक करवा, वापस जब गाड़ी में बैठने को था तभी शीशा ठक ठकाने की आवाज सुनाई दी। और दिन ओता तो शायद अनसुनी करके गाड़ी चला देता मगर प्रसन्नता को शेयर करने के मूड में मैंने शीशा उतार के एक निगाह बाहर को देखा, एक मैली कुचैली साडी में 60 – 65 साल की महिला जिसकी गोद में डेढ़ साल का बच्चा था, मेरी तरफ याचना में हाथ फैलाए देख रही थी। उन दोनों की उम्र भेद पर मै कुछ कहने को था मगर रुक गया। उसके हाथ अब भी फैले थे। चेहरे पर झुर्रियां और सफ़ेद पके बाल साफ बता रहे थे कि वक्त के थपेड़ों का जुल्म उस पर बहुत भारी सा गुजरा है। शाम ढलती सूरज के समय उसके माथे पसीना बयां कर रहा था कि वो बच्चे को काफी देर और दूर से लादे चल रही है।

आधे मिनट से भी कम समय में दान पाने की उसकी पात्रता मुझमे स्पस्ट हो गई थी, जेब से पांच का सिक्का निकाल मैंने फैले हाथ में रख दिया। कर का शीशा चढाते समय बच्चे पर नजर टिक गई, गेहुआ सा रंग, कुम्हलाये से गाल, काली आँखे। उस बच्चे में आम तौर पर सामान्य बच्चों में पाए जाने वाली चंचलता का दूर तक निशान नही था। रह रह कर बच्चा रोता और चुप हो जाता।

भावुकता का सैलाब जो ऐसे ही किसी पलो के लिये रुका रहता है, मुझ पर चढने उतरने की कोशिश में लग गया। वो दुआ दे के पलटने लगी तभी दुबारा मेरी नजर बच्चे पर टिक गई। कभी वो इधर देखता कही उधर उसकी निगाह में स्थाईत्व का या कहीं ठहर जाने जैसा भाव नहीं जान पड़ता था। मैंने शीशा फिर खोला बेवजह हार्न दबाया उस बालक पर कुछ असर हुआ हो लगा नहीं।

मुझे कुछ अनिष्ट की आशंका हुई। मैंने मागने वाली औरत से अपनी आशंका जाहिर कर ही दी।इस बच्चे की नजर को कुछ हुआ है क्या ?

वो बोली साब जी ये बचपन से अंधा है, इसे कुछ सुनाई भी नहीं देता इसलिए बोलना भी नहीं आता। समझ लो बचपन से अंधा गूगा, बहरा। मुझे लगा कोई अदृश्य पंजा मेरी गरदन दबोच रहा है, मेरी आखों में कोई पट्टी बाँध के घुमा के छोड़ गया है, मेरे कान में कोई पिघला सीसा दाल गया है। मैं बहुत जोर लगाने के बाद केवल ये पूछ सका, इसकी माँ……? वो बताई ये जब तीन महीने का था तब किसी ने इसे हमारे फूटपाथ में जहाँ हम सोते हैं डाल गया था।

मैंने गाड़ी के डेशबोर्ड में लगी कृष्ण की मूर्ती को पल भर देख के, महिला से कहा ये लगातार रो रहा है, शायद भूखा होगा, पास रखी मिठाई का एक डिब्बा उसे थमा दिया। जेब से पर्स निकाल के सौ रुपे का नोट उसे पकड़ा के गाडी को गेयर में डाल आगे बढ़ गया।

उस जगह और उस माहौल से कहने को तो मै निकल गया मगर अब जब भी दुबारा उसी राह से गुजरना होता है, मै दुआ करता हूँ वो बच्चा और उसकी शून्य को ताकती, खा जाने वाली भूखी आँखों का मुझसे सामना ना हो।

~ आनन्द प्रिय शर्मा

About Anand Priya Sharma

निजी व्यवसाय, लेखन नियमित नहीं, कभी कोई घटना दिल के करीब से गुजर जाती है तो अभिव्यक्ति के लिए कलम उठ जाती है| भूख एक ऐसे ही घटना का रुपान्तरण है| पता - २०१, शालिग्राम श्रीम स्रुस्ठी, सनफारमा रोड, अटलादरा, वडोदरा, गुजरात

Check Also

Hanuman - The Powerful

Hanuman: The Powerful – Poetry On Monkey God

Hanuman: The Powerful You are the monkey god, the real superman Son of Vayu Deva …