साधारण जन: राजीव कृष्ण सक्सेना

साधारण जन: राजीव कृष्ण सक्सेना

साधारण जन: राजीव कृष्ण सक्सेना – I feel amazed at the resilience of the common Indians. We see how they suffer calamities and then catch the straws of life and start all over again. Be it floods, draughts, earthquakes or terrorism, they are back on their feet in no time. One truly wonders where that internal strength for survival comes from.

साधारण जन: राजीव कृष्ण सक्सेना

कितने अदभुद हैं आम लोग‚
कितने महान साधारण जन‚
कितनी निष्ठा कितना धीरज‚
उनको प्रणाम शत बार नमन।

वे मानवता के कर्णधार‚
वे शक्तिहीन पर बल अपार‚
ले सदा जूझते रहते हैं‚
जीवन के रण में लगातार।

वे मूक कभी परवश सुनते
विजयी सेना की हुंकारें‚
पोषण देते फिर भी पाते
साधू संतों की फटकारें।

कोई नृशंस जब रिपु का दल
घनघोर चढ़ाई करता है‚
या प्रकृति की विपदा भारी
ले काल उन्हें आ धरता है।

विध्वंस कभी भूकंपों का
सब कुछ उजाड़ कर जाता है‚
या कोप कभी सूखे का ऐसा
अन्न ना कोई पाता है।

विकराल महामारी उनकी
बस्ती में कहर मचाती है‚
फिर महाकाल सी बाढ़ कभी
सर्वस्व बहा ले जाती है।

दिल दहलाने वाले विनाश
के बादल काले छाते हैं‚
कैसे उबरेंगे सदमे से
वे समझ नहीं यह पाते हैं।

कुछ अश्रु बहा लाचारी के‚
जाने पा शक्ति कहां से वे‚
उठ खड़े पुनः हो जाते हैं‚
जीवन पथ पर जुट जाते हैं।

फिर से घरबार संजोते हैं‚
फिर से खेतों को जोते हैं‚
वे मानवता की धारा को‚
अवरूद्ध न होने देते हैं।

दुख जो भी पाए हों जग में
अंतर की व्यथा भुलाते हैं‚
फिर से जीवन की डोर थाम
वे त्यौहारों में गाते हैं।

फिर ढोल मंजीरे बजते हैं‚
फिर से होते हैं नाच रंग‚
बारातें फिर से चलती हैं‚
दुल्हन को ले उल्लास संग।

इतिहास न उनके बारे में
कुछ कहीं कभी भी कहता है‚
लेकिन हर युग में मार सदा
साधारण जन ही सहता है।

वे दुर्गमतम जीवन पथ पर
जो भी हो चलते जाते हैं‚
गिर गिर कर सदा संभलते हैं
आगे बढ़ते ही जाते हैं।

हे जन महान यह शक्ति स्रोत
बल दिव्य कहां से आया है?
“यह दीप न बुझने देंगे हम”
संकल्प कहां से पाया है?

∼ ‘साधारण जन‘ poem by ‘राजीव कृष्ण सक्सेना

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