पानी बचाओ पर बाल-कविता: नहीं व्यर्थ बहाओ पानी

पानी बचाओ पर बाल-कविता: नहीं व्यर्थ बहाओ पानी

सदा हमें समझाए नानी,
नहीं व्यर्थ बहाओ पानी।
हुआ समाप्त अगर धरा से,
मिट जायेगी ये ज़िंदगानी।

नहीं उगेगा दाना-दुनका,
हो जायेंगे खेत वीरान।
उपजाऊ जो लगती धरती,
बन जायेगी रेगिस्तान।

हरी-भरी जहाँ होती धरती,
वहीं आते बादल उपकारी।
खूब गरजते, खूब चमकते,
और करते वर्षा भारी।

हरा-भरा रखो इस जग को,
वृक्ष तुम खूब लगाओ।
पानी है अनमोल रत्न,
तुम एक-एक बूँद बचाओ।

श्याम सुन्दर अग्रवाल

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