कलियुगी रामलीला: आज के कलयुग दौर की रामलीला पर हास्य-व्यंग कविता

कलियुगी रामलीला: आज के कलयुग दौर की रामलीला पर हास्य-व्यंग कविता

कलियुगी रामलीला: रामलीला उत्तरी भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित पर आधारित नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर खेला जाता है।

दिल्ली में रामलीलाओं का इतिहास बहुत पुराना है। दिल्ली में, सबसे पहली रामलीला बहादुरशाह ज़फर के समय पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई थी। लवकुश रामलीला कमेटी, अशोक विहार रामलीला] कमेटी आदि दिल्ली की प्राचीन रामलीलाओं में से हैं। राम भारतीय कला केन्द्र द्वारा रामलीला का मंचन तीन घंटों में दर्शाया जाता है। यहाँ की रामलीला में पात्रों की वेशभूषा दर्शनीय है। इनके अतिरिक्त दिलशाद गार्डन रामलीला, दिल्ली छावनी की रघुनन्दन लीला समिति, मयूर यूथ क्लब मयूर विहार-1 रामलीला, सूरजमल विहार रामलीला आदि भी दिल्ली की चर्चित रामलीलाओं में से हैं।

कलियुगी रामलीला: शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

रावण के प्रति हनुमान का उदार भाव देखकर
रामलीला का मैनेजर झल्लाया
हनुमान को पास बुलाकर चिल्लाया
क्यों जी? तुम रामलीला की मर्यादा तोड़ रहे हो
अच्छी ख़ासी कहानी को उल्टा किधर मोड़ रहे हो?

तुम्हें रावण को सबक सिखाना था
पर तुम उसके हाथ जोड़ रहे हो
हनुमान बना पात्र हंसा और बोला
भैया यह त्रेता की नहीं कलियुग की रामलीला है
यहाँ हर प्रसंग में कुछ न कुछ काला पीला है

मैं तो ठहरा नौकर मुझे क्या रावण क्या राम
जिसकी सत्ता उसका गुलाम
आजकल हमें जल्दी जल्दी मालिक बदलना पड़ता है
इसीलिए राम के साथ साथ
रावण से भी मधुर संबंध रखना पड़ता है

मुझे अच्छी तरह मालूम है कि
यह रावण मरेगा तो है नहीं
ज्यादा से ज्यादा स्थान बदल लेगा
वह राम का कुछ बिगाड़ पाए या नहीं
किन्तु मेरा तो पक्का कबाड़ा कर देगा

अतः रावण हो या राम
हमें तो बस तनख्वाह से काम
जैसे आम के आम और गुठलियों के दाम
मैं ही नहीं सभी पाखंडी चालें चल रहे हैं
समय के हिसाब से सभी किरदार

अपनी भूमिका बदल रहे हैं
अब विभीषण को ही देखिए
कहने को तो रावण ने उसे लात मारी थी
पर वह उसकी राजनैतिक लाचारी थी
देखना अब विभीषण इतिहास नहीं दोहराएगा
मौका मिलते ही राम की सेना में दंगा करवाएगा

अब कुंभकर्ण भी फालतू नही मरना चाहता
फ्री की खाता है और
कोई काम भी नहीं करना चाहता
उसे अब नींद की गोली खाने के बाद भी
नींद नहीं आती

फिर भी जबरन सोता है
पर सोते हुए भी लंका की हर गतिविधि से वाकिफ होता है
इस बार उसकी भूमिका में भी परिवर्तन हो जाएगा
कुंभकर्ण लड़ेगा नहीं
जागेगा .खाएगा पिएगा और फिर सो जाएगा

अब अंगद में भी
आत्मविश्वास कहाँ से आएगा?
उसे मालूम है कि पैर अब
पूरी तरह जम नहीं पाएगा
कौन जाने भरी सभा के बीच
कब अपने ही लोग टाँग खींच दें

इसलिए उसे हमेशा युवराज बने रहना मंजूर नहीं है
यदि बालि कुर्सी छोड़ दे तो दिल्ली दूर नहीं है
वह अपनी सारी नैतिकता को
जमकर दबोच रहा है
आजकल वह बाली को खुद मारने की सोच रहा है

वह राजमुकुट अपने सिर पर धरना चाहता है
और बचा हुआ सुग्रीव का रोल खुद करना चाहता है
बूढ़े जामवंत भी अब थक गए हैं
अपने दल के अनुशासनहीन बंदरों के वक्तव्य सुनकर कान पक गए हैं
अब जामवंत का उपदेश नहीं सुना जाएगा

इस बार दल का नेता
कोई चुस्त चालाक बंदर चुना जाएगा
सुलोचना को भी
भरी जवानी में सती होना पसंद नहीं है
कहती है
साथ जीने का तो है पर मरने का अनुबंध नहीं है

इसलिए अब वह मेघनाद के साथ सती नहीं हो पाएगी
बल्कि उसकी विधवा बनकर
नारी जागरण अभियान चलाएगी
जटायु को भी अपना रोल बेहद खल रहा है
वह भी अपनी भूमिका बदल रहा है

अब वह दूर दूर उड़ेगा
रावण के रास्ते में नहीं आएगा
अपना फर्ज तो निभाएगा पर
अपने पंख नहीं कटवाएगा
मारीच ने भी अपने निगेटिव रोल पर
गंभीरता से विचार किया है

उसने सुरक्षा के लिए
बीच का रास्ता निकाल लिया है
वह सोने का मृग तो बनेगा
पर अन्दर बुलेटप्रूफ जाकिट पहनेगा
राम का बाण लगते ही गिर जाएगा

लक्ष्मण को चिल्लाएगा और धीरे से भाग जाएगा
अभी परसों ही शूर्पनखा की नाक कटी है
बड़ी मुश्किल से
अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटी है
पर भूलकर भी यह मत समझना कि

अब वह दोबारा नहीं आएगी
कटी नाक लेकर अब वह
लंका नहीं सीधे अमेरिका जाएगी
किसी बड़े अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी करवाएगी
और नया चेहरा लेकर फिर एक बार
अपनी भूमिका दोहराएगी

यूँ तो शूर्पनखा के कारनामे जग जाहिर हैं
पर करें क्या
खर और दूषण राम की पकड़ से बाहर हैं
यदि शूर्पनखा से बचना है तो
उसकी नाक नहीं जड़ें काटना होगी
अब लक्ष्मण को बाण नहीं तोप चलानी होगी

ऐसी परिस्थिति में राम को भी
मर्यादा के बंधन छोड़ना पड़ेंगे
रावण को मारना है तो
सारे सिद्धांत छोड़ना पड़ेंगे

~ ‘कलियुगी रामलीला’ poem by ‘शास्त्री नित्यगोपाल कटारे’

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