आई अब की साल दिवाली मुँह पर अपने खून मले - कैफ़ी आज़मी

आई अब की साल दिवाली: कैफ़ी आज़मी

आई अब की साल दिवाली: कैफ़ी आज़मी (असली नाम: अख्तर हुसैन रिजवी) उर्दू के एक अज़ीम शायर थे। उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए भी कई प्रसिद्ध गीत व ग़ज़लें भी लिखीं, जिनमें देशभक्ति का अमर गीत – “कर चले हम फिदा, जान-ओ-तन साथियों” भी शामिल है।

कैफी का असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गाँव मिजवां में 14 जनवरी 1919 में जन्मे। गाँव के भोलेभाले माहौल में कविताएँ पढ़ने का शौक लगा। भाइयों ने प्रोत्साहित किया तो खुद भी लिखने लगे। 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी।

आई अब की साल दिवाली: कैफ़ी आज़मी

आई अब की साल दिवाली मुँह पर अपने खून मले
आई अब की साल दिवाली
चारों तरफ़ है घोर अन्धेरा घर में कैसे दीप जले
आई अब की साल दिवाली…

बालक तरसे फुलझड़ियों को (दीपों को दीवारें – २)
माँ की गोदी सूनी सूनी (आँगन कैसे संवारे – २)
राह में उनकी जाओ उजालों बन में जिनकी शाम ढले
आई अब की साल दिवाली…

जिनके दम से जगमग जगमग (करती थी ये रातें -२)
चोरी चोरी हो जाती थी (मन से मन की बातें – २)
छोड़ चले वो घर में अमावस, ज्योती लेकर साथ चले

टप-टप टप-टप टपके (आँसू छलकी खाली थाली -२ )
जाने क्या क्या समझाती है (आँखों की ये लाली -२)
शोर मचा है आग लगी है कटते है पर्वत पे गले

कैफ़ी आज़मी

Film: Haqeeqat (1964)
Music Director: Madan Mohan
Lyricist: Kaifi Azmi
Singer: Lata Mangeshkar

किशोर होते-होते मुशायरे में शामिल होने लगे। वर्ष 1936 में साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और सदस्यता ग्रहण कर ली। धार्मिक रूढि़वादिता से परेशान कैफी को इस विचारधारा में जैसे सारी समस्याओं का हल मिल गया। उन्होंने निश्चय किया कि सामाजिक संदेश के लिए ही लेखनी का उपयोग करेंगे। 1943 में साम्यवादी दल ने मुंबई कार्यालय शुरू किया और ‍उन्हें जिम्मेदारी देकर भेजा।

यहाँ आकर कैफी ने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया। जीवनसंगिनी शौकत से मुलाकात हुई। आर्थिक रूप से संपन्न और साहित्यिक संस्कारों वाली शौकत को कैफी के लेखन ने प्रभावित किया। मई 1947 में दो संवेदनशील कलाकार विवाह बंधन में बँध गए। शादी के बाद शौकत ने रिश्ते की गरिमा इस हद तक निभाई कि खेतवाड़ी में पति के साथ ऐसी जगह रहीं जहाँ टॉयलेट / बाथरूम कॉमन थे। यहीं पर शबाना और बाबा का जन्म हुआ। बाद में जुहू स्थित बंगले में आए। फिल्मों में मौका बुजदिल (1951) से मिला।

स्वतंत्र रूप से लेखन चलता रहा। कैफी की भावुक, रोमांटिक और प्रभावी लेखनी से प्रगति के रास्ते खुलते गए और वे सिर्फ गीतकार ही नहीं बल्कि पटकथाकार के रूप में भी स्थापित हो गए। ‘हीर-रांझा’ कैफी की सिनेमाई कविता कही जा सकती है। सादगीपूर्ण व्यक्तित्व वाले कैफी बेहद हँसमुख थे, यह बहुत कम लोग जानते हैं। वर्ष 1973 में ब्रेनहैमरेज से लड़ते हुए जीवन को एक नया दर्शन मिला – बस दूसरों के लिए जीना है। अपने गाँव मिजवान में कैफी ने स्कूल, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और सड़क बनवाने में मदद की। उत्तरप्रदेश सरकार ने सुल्तानपुर से फूलपुर सड़क को कैफी मार्ग घोषित किया है। 10 मई, 2002 को कैफी यह गुनगुनाते हुए इस दुनिया से चल दिए: ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नहीं।

Check Also

Ram Navami Poems: Kosalendraya Mahaniya Guna Badhaye

Ram Navami Poems: Kosalendraya Mahaniya Guna Badhaye

Ram Navami Poems: Rama Navami is one of the most popular festivals in India. It …