‘हिन्दू हूँ, पुनर्जन्म लेकर स्वतंत्र भारत में फिर आऊँगा’: गीता पाठ कर फाँसी के फंदे पर झूलने वाला ‘काकोरी’ का नायक
जिस दिन उन्हें फाँसी होनी थी, उस दिन भी उन्होंने भगवद्गीता का पाठ और व्यायाम किया। उन्होंने कहा था कि वो मृत्यु के लिए फाँसी के फंदे पर झूलने नहीं जा रहे हैं, बल्कि इससे उन्हें स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है।
Full Name: | Rajendra Nath Lahiri |
Born: | 29 June 1901 – Pabna District, Bangladesh |
Died: | 17 December 1927, Uttar Pradesh Hanged in the Gonda district jail |
Parents: | Kshitish Mohan Lahiri |
Movement: | Indian independence movement
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राजेंद्रनाथ लाहिड़ी: काकोरी काण्ड का प्रमुख नायक – भारत में एक से बढ़ कर एक क्रांतिकारी हुए हैं। इनमें बंगाल के स्वतंत्रता सेनानियों का एक अलग ही स्थान है। बंगाल, यानी ब्रिटिश काल का बंगाल प्रेसिडेंसी। इसमें आज के पश्चिम बंगाल के साथ-साथ बांग्लादेश भी आ जाता है। आज के इसी बांग्लादेश के पबना जिले में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का जन्म हुआ था। उनका नाम ‘काकोरी कांड‘ के कारण लोकप्रिय हुआ। इसमें शामिल अन्य क्रांतिकारी थे – अशफाकुल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राम प्रसाद बिस्मिल।
इन तीनों का नाम तो आपने सुना ही होगा, खासकर बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान का। लेकिन, राजेंद्र लाहिड़ी का नाम अक्सर दब जाता है। दिसंबर 19, 1927 – ये वही तारीख़ है, जब इन चारों को फाँसी की सज़ा होनी थी। लेकिन, लाहिड़ी को 2 दिन पहले ही मौत को गले लगाना पड़ा। 1920 का वो दशक था, जब भारत में ब्रिटिश आक्रांताओं के विरुद्ध क्रांति भी बदलाव के दौर से गुजर रही थी। ये सभी 1924 में स्थापित ‘Hindustan Republican Association’ के सदस्य थे।
ये वो समय था, जब भगत सिंह और बिस्मिल जैसे क्रांतिकारी न सिर्फ ब्रिटिश के दाँत खट्टे करते थे, बल्कि अपने विचारों से समाज को झकझोरते थे और आगे का समाज कैसा हो, इस बारे में लेखन और चिंतन का कार्य करते थे। राजनीति और धर्म से लेकर जातिवाद तक पर वो बहस करते थे। HRA का भी यही स्वप्न था कि आज़ाद भारत में एक ऐसे समाज का निर्माण हो, जहाँ कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का शोषण न कर सके।
राजेंद्रनाथ लाहिड़ी: काकोरी काण्ड का प्रमुख नायक
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी इस नई तरह की क्रांति के अगुआ समूह में थे। उनका जन्म जून 29, 1901 को एक ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ था। राजेंद्र लाहिड़ी के बारे में कहा जाता है कि वो एक शांत स्वभाव के व्यक्ति थे और अक्सर मुस्कराते रहते थे, लेकिन उनके भीतर क्रांति की आग जलती रहती थी। उन्हें पढ़ाई के लिए वाराणसी भेजा गया था, जहाँ वो सचिन्द्रनाथ सान्याल के संपर्क में आए। सान्याल Hindustan Republican Association के सह-संस्थापक थे।
अर्थशास्त्र और इतिहास जैसे विषयों में स्नातक की डिग्री हासिल कर चुके राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का क्रांतिकारी जीवन भी यहीं से शुरू होता है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में उन्हें ‘बंगाल साहित्य परिषद’ का मानद सचिव चुना गया था। साथ ही साथ ही वे वहाँ के हेल्थ यूनियन के सचिव भी थे। वे ‘बंगबानी’ जैसे समाचार पत्र और ‘शंका’ जैसी पत्रिका में लेखन कार्य भी करते थे। ‘शंका’ के तो वे संपादक भी थे।
इसी से राजेंद्रनाथ लाहिड़ी के बौद्धिक स्तर का पता लगाया जा सकता है। वे क्रांतिकारी तो थे ही, लेकिन साथ ही एक बुद्धिजीवी, एक चिंतक भी थे। ‘अग्रदूत’ नाम की एक मासिक पत्रिका भी उस समय आती थी, जिसे हाथ से ही लिखा जाता था। वो उसमें भी लेख लिखा करते थे। ये भी ध्यान देने वाली बात है कि जब उन्होंने भारत माता के लिए मौत को गले लगाया था, तब वे इतिहास विषय में MA की पढ़ाई कर रहे थे।
HRA ने उन्हें वाराणसी में ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी थी। उन्हें वहाँ का ‘डिस्ट्रिक्ट ऑर्गेनाइजर’ और प्रांतीय परिषद का सदस्य का पद दिया गया था। इस दौरान वो कभी चारु, कभी जवाहर तो कभी जुगल किशोर बन कर क्रांति की ज्वाला को जगाए रखते थे, ताकि अंग्रेजों से बच कर उन्हें धूल चटा सकें। ‘काकोरी कांड’ के दौरान उन्होंने ही दूसरे दर्जे के डब्बे की चेन खींच कर ट्रेन रोकी थी। उस ट्रेन को क्रांतिकारियों ने लूट कर अंग्रेजों को बड़ा झटका दिया था।
इससे पहले भी HRA के लिए फंड्स जुटाने हो या फिर कोई दुष्कर कार्य करना हो, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहते थे। HRA को क्रांतिकारी पोस्टर्स बनाने, हथियार खरीदने और अंग्रेजों से लड़ाई के लिए वित्त की ज़रूरत होती थी। इसके लिए वो उन अमीर जमींदारों को लूटते थे, जो अंग्रेजों के साथ मिल कर भारत की गरीब जनता का लहू चूस रहे थे। बाद में उन्होंने अंग्रेजों का ही माल लूटने की योजना बनाई।
वैसे भी अंग्रेज भारत की संपत्ति को विदेश भेज रहे थे या बर्बाद कर रहे थे, इसलिए अंग्रेजों को लूटना भारत की जनता का भला करने का ही कार्य था। इसी दौरान उन्होंने अगस्त 9, 1925 को राजस्व का माल लेकर जा रहे अंग्रेजों की ट्रेन को काकोरी में लूटा। इसके बाद अंग्रेजों की नज़र टेढ़ी हो गई थी, इसलिए क्रांतिकारियों को अलग-अलग जगहों पर छिप कर रहना पड़ा। साहित्य की समझ के धनी लाहिड़ी ने ये समय साहित्यिक चर्चा और चिंतन में बिताया।
आखिरकार नवंबर 10, 1925 को राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। उन्हें कोलकाता से गिरफ्तार किया गया। दक्षिणेश्वर में उन्हें उनके कई अन्य साथियों के साथ एक बम की फैक्ट्री से गिरफ्तार किया गया। इसे ‘दक्षिणेश्वर बम केस’ भी कहा जाता है। उन्हें पहले तो 10 साल की सज़ा सुना कर अंडमान भेजने का हुक्म दिया गया, लेकिन बाद में अंग्रेजों को पता चला कि ‘काकोरी कांड’ के पीछे असल दिमाग राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का ही था।
उन्हें लखनऊ सेन्ट्रल जेल में ट्रांसफर कर दिया गया। सबसे गौर करने वाली बात ये है कि राजेंद्र लाहिड़ी को फाँसी देने के लिए जो तारीख़ तय की गई थी, उससे 2 दिन पहले ही उन्हें फंदे से लटका दिया गया। ये अपने-आप में एक दुर्लभ मामला है, जब किसी को तय तारीख़ से पहले ही फाँसी दे दी गई हो। कहा जाता है कि जब वे गोंडा जेल में बंद थे, तो बाहर उनके साथियों ने उन्हें जेल से निकालने का पूरा इंतजाम कर लिया था, इसलिए ऐसा किया गया।
गोंडा जेल अंग्रेजों के लिए तुरंत पहुँचना आसान नहीं था या अगर वहाँ क्रांतिकारियों का आक्रमण होता तो अंग्रेज तुरंत दल-बल नहीं भेज पाते, इसलिए उन्होंने राजेंद्र लाहिड़ी को खतरा मान कर उन्हें फाँसी पर लटका दिया। राजेंद्र लाहिड़ी ने अपने अंतिम दिन ईश्वर की भक्ति में भी बिताए। दक्षिणेश्वर प्रवास के दौरान उन्हें कुछ आध्यात्मिक अनुभव हुए थे, जिससे माँ काली के प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ी। वहीं से उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।
राजेंद्र नाथ लाहिड़ी एक क्रांतिकारी थे, जिनके जिंदा रहने के दौरान ही नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद भी दुश्मन भयभीत थे। अंग्रेजों को लगता था कि उनकी मौत की खबर सुन कर जेल में विद्रोह हो सकता है, इसलिए उन्होंने टेढ़ी नदी के किनारे गुपचुप तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। फाँसी पर झूलने के समय भी उनके मुँह से ‘वंदे मातरम्’ ही निकल रहा था। आज तक किसी को नहीं पता कि उनका अंतिम संस्कार कहाँ किया गया था।
कहते हैं, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के साथी उनके अंतिम संस्कार के स्थल पर एक स्मारक बनवाना चाहते थे, लेकिन अंग्रेजों की सरकार ने इसकी अनुमति ही नहीं दी। इस दौरान मनमथनाथ गुप्त, लाल बिहारी टंडन और ईश्वरशरण जैसे उनके साथियों ने उस स्थल को चिह्नित कर वहाँ एक बोतल गाड़ दी, ताकि बाद में स्मारक बनवाया जा सके। लेकिन, दुर्भाग्य से ये क्रांतिकारी भी अन्य मामलों में गिरफ्तार कर लिए गए।
राजेंद्र नाथ लाहिड़ी मात्र 8 वर्ष की आयु में ही वाराणसी अपने मामा के यहाँ पढ़ने आ गए थे। उसी दौरान क्रांतिकारियों की ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशन आर्मी’ के वाराणसी की जिम्मेदारी उनके कँधों पर आ गई। काकोरी कांड के लिए बिस्मिल और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की जो बैठक हुई थी, उसमें चंद्रशेखर आजाद भी मौजूद थे। इस मिशन का सारा दायित्व उन्हें ही सौंपा गया था। उनके खिलाफ सरकारी खजाना लूटने और सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने का मुकदमा चलाया गया।
जिस दिन उन्हें फाँसी होनी थी, उस दिन भी उन्होंने भगवद्गीता का पाठ और व्यायाम किया। उन्होंने कहा था कि वो मृत्यु के लिए फाँसी के फंदे पर झूलने नहीं जा रहे हैं, बल्कि इससे उन्हें स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है। उन्होंने खुद को हिन्दू बताते हुए पुनर्जन्म में अटूट आस्था की बात की थी और कहा था कि अगले जन्म में वो एक स्वस्थ शरीर में जन्म लेना चाहते हैं, ताकि भारत माता के लिए फिर कार्य कर सकें।
इस घटना के बाद किसी को भी गोंडा जेल में फाँसी नहीं हुई है। जहाँ उन्हें फाँसी हुई थी, उस कमरे को मंदिर का रूप दिया गया है। काल कोठरी को भी वैसे ही रखा गया है। प्रत्येक वर्ष दिसंबर में उनके बलिदान दिवस के दिन इस कोठरी को खोला जाता है, जहाँ लोग इस अमर बलिदानी को याद करने आते हैं। मोहनपुर गाँव में जन्मे राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने गोंडा के जेल रोड पर स्थित कारगार में अंतिम साँसें लीं।
Rajendra Lahiri, went to the gallows with a smile on his lips, kissed the rope, shouted Vande Mataram.Another great son of Bharat, had given up his life for the country’s freedom.
Tributes to the braveheart.
Rajendra Nath Lahiri 🙏 pic.twitter.com/oAAKUUvxbq— GITA 🇮🇳 (@GitaSKapoor_) December 17, 2020
‘काकोरी कांड’ के मामले में अंग्रेजों ने 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया था। एक यात्री की उस दौरान गलती से गोली लगने से मौत हो गई थी, इसलिए अंग्रेजों ने मुक़दमे में हत्या की धाराएँ भी लगाई थीं। फाँसी के वक़्त राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की उम्र मात्र 26 वर्ष ही थी। दिसंबर 17, 1927 की वही तारीख़ थी, जब भगत सिंह और राजगुरु ने ब्रिटिश पुलिस में ASP जॉन सॉन्डर्स को मार गिराया था। उन्होंने लाला लाजपत राय पर लाठी चलवाने वाले अंग्रेज अधिकारी से बदला लेने के लिए ये कार्रवाई की थी।
हालाँकि, इस दौरान SP जेम्स स्कॉट बच निकला था, क्योंकि सॉन्डर्स को ही क्रांतिकारियों ने एसपी समझ लिया था। अप्रैल 6, 1927 वो तारीख़ ‘काकोरी कांड’ के बलिदानियों को फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। एक और जानने लायक बात ये है कि क्रांति उन्हें विरासत में मिली थी। जब उनका जन्म हुआ था, तब उनके पिता व बड़े भाई ‘अनुशीलन दल’ की गुप्त गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में जेल में बंद थे।
उनके पिता का नाम क्षितिज मोहन लाहिड़ी खुद एक स्वतंत्रता सेनानी थे। पबना में कई विकास कार्य भी उनकी ही देन हैं। 1915 में उनके कुछ कारीबियों की मदद से उनके नाम पर उनके बेटे राजेन्द्र ने लाहिड़ी मोहनपुर में केएम इंस्टीटूशन नामक स्कूल भी खोल था। इस स्कूल के लिए उनकी ही दान की गई जमीन का इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने सिराजगंज में रेलवे स्टेशन भी बनवाया। 1909 में उनका परिवार वाराणसी शिफ्ट हो गया था।
इसी तरह ‘काकोरी कांड’ के नायक राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने अपनी माँ बसंत कुमारी के नाम पर एक पारिवारिक पुस्तकालय की स्थापना की थी। दरअसल, वो दक्षिणेश्वर में बम बनाने प्रशिक्षण लेने गए थे, लेकिन गलती से उनके साथियों से एक बम फट गया। इसी का बहाना बना कर अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। उन्होंने बम बनाने के सारे सामान भी जुटा लिए थे। फाँसी के समय वो मुस्कुरा रहे थे और फंदे को उन्होंने चूमा भी था।