गुरू गोबिंद सिंह प्रकाश उत्सव: त्याग और वीरता की कहानी

गुरू गोबिंद सिंह प्रकाश उत्सव: त्याग और वीरता की कहानी

सांसारिक लोगों को मोह त्यागने का रास्ता दिया था। लोगों के कल्याण हेतु धर्मनिरपेक्षता की लहर चलाई। आप ने मूर्ति-पूजा के विरुद्ध भी आवाज उठाई तथा नाशवान संसार के बारे में अवगत करवाकर मात्र परमात्मा की भक्ति की तरफ प्रेरित करके जनमानस को सही दिशा दी।

आप ने अपनी बाणी द्वारा जन साधारण को सच्चे मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया। इस मिशन की पूर्ति के लिए आपके द्वारा शब्द ‘गुरु’ को मान्यता देना था। श्री नांदेड़ साहिब (महाराष्ट्र) में 1708 ई. को आप ने समूची संगत को शब्द गुरु के आदेश पर चलने के लिए कहा और श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वोच्च स्थान दिया। सारी संगत को यह हुक्म किया कि भविष्य में किसी देहधारी तथाकथित गुरु को मान्यता नहीं देनी। गुरु रूप बाणी जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है यही आगे से जनमानस की गुरु तथा रहनुमाई होगी। पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी द्वारा तैयार करवाए गए श्री गुरु ग्रंथ साहिब को ही सर्वोच्चता दी और फरमान किया:

सभ सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ

इस प्रकार सांसारिक लोगों को नई दिशा मिली। गुरु जी जिस उद्देश्य से संसार में आए,उसको थोड़े समय में रहकर भी पूरा किया जिसके बारे में आप ने ‘बचित्र नाटक’ में इस प्रकार बयान किया है:

हम इह काज जगत मो आए।।
धरम हेत गुरदेव पठाए।।
याही काज धरा हम जनमं।।
समझ लेहु साधू सभ मनमं।।
धरम चलावत संत उबारन।।
दुसट सभन को मूल उपारन।।

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सर्व-हितकारी थे। जो मानवता के दुख निवृत्त करने हेतु विश्व में आए। आपके द्वारा किए गए सांसारिक कार्यों का वृत्तांत लासानी है। गुरु जी तो खुद परमात्मा रूप थे जिन्होंने अनेक कौतुक रचाकर मानवता को सत्य का मार्ग दर्शाया। आप के बारे में गुरमति के महान लिखारी भाई गुरदास जी दूजा जी का कथन है:

वह प्रगटिओ पुरख भगवंत रूप गुरू गोबिंद सूरा

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