गुरू गोबिंद सिंह प्रकाश उत्सव: त्याग और वीरता की कहानी

गुरू गोबिंद सिंह प्रकाश उत्सव: त्याग और वीरता की कहानी

श्री गुरु नानक देव जी की गद्दी के दसवें जामे में आए श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का संसार-आगमन बहुपक्षीय रूप में दृष्टिगोचर होता है। नाशवान संसार में बहुत कम समय गुजार कर सांसारिक लोगों के लिए किए गए कार्य भविष्य के लिए रास्ता दर्शाने वाले हैं। श्री पटना साहिब (बिहार) में आगमन कर बचपन की लीलाओं से लेकर श्री नांदेड़ साहिब (महाराष्ट्र) तक का जीवन सफर अनेक हैरानकुन कारनामों से भरपूर है।

श्री आनंदपुर साहिब (पंजाब) पहुंचने पर छोटी अवस्था में ही पिता-गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के साथ हर तरह के कार्यों में हिस्सा लिया। पंडित किरपा राम जो मटन (कश्मीर) से औरंगजेब के जुल्म से परेशान कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए प्रतिनिधिमंडल सहित आप के गुरु-पिता श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के पास फरियाद लेकर आए तो आप ने जान लिया कि धर्म को बचाने के लिए तथा जुल्म को रोकने के लिए किसी ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। इसलिए आप ने गुरु-पिता श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को धर्म की रक्षा हेतु दिल्ली जाने के लिए तैयार किया तथा अपने सिर पर सारी जिम्मेदारी ली। गुरु-पिता से बिछुडऩा तथा समूची कौम का उत्तरादायित्व करना किसी ऊंची सोच का ही प्रतीक था।

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने पिता-गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत के उपरांत जुल्म को रोकने के लिए निर्बल व कमजोर हो चुके सांसारिक लोगों को तैयार किया ताकि वे खुद जुल्म का मुकाबला करके सिर उठाकर जीवन व्यतीत कर सकें। इसलिए बलहीन हो चुके लोगों को अपनी रक्षा हेतु तैयार करने के लिए श्री आनंदपुर साहिब के स्थान पर बैसाखी वाले दिन विशेष समागम करके खालसा पंथ की सृजना की। लोगों को अपने हकों के लिए जीने और जुल्म को रोकने के लिए तैयार किया। नि:सहाय हो चुके लोगों को सिर्फ तैयार ही नहीं किया बल्कि खुद अग्रणी होकर इस लहर का संस्थापन भी किया और खालसा पंथ की सृजना कर खालसे को पूर्ण मान-सम्मान दिया।

आपके द्वारा चलाई गई इस लहर से कौम में जागृति आई। इसके साथ ही पहाड़ी राजाओं को अपने राज-भाग का डर खाने लगा। इसलिए वे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा चलाई लहर को रोकने हेतु गुरु साहिब के विरुद्ध हो गए और औरंगजेब बादशाह को गुरु जी के विरुद्ध खबरें भेजी गईं।

पहाड़ी राजाओं की बदनीति को रोकने तथा औरंगजेब बादशाह के बढ़ चुके जुल्म के विरुद्ध टक्कर लेने के लिए खालसा फौज को कई बार युद्ध में जूझना पड़ा। अब गुरु साहिब द्वारा चलाई गई लहर से लोग साहसी एवं जांबाज बनकर हर तरह के जुल्म के विरुद्ध टक्कर लेने के लिए जान कुर्बान करने हेतु तैयार हो चुके थे। पहाड़ी राजाओं ने मुगलों की शाही सेना के साथ मिलकर कई बार गुरु जी के साथ युद्ध छेड़ा। अल्प संख्या होने के बावजूद गुरु जी की सेना के सिपाहियों ने पहाड़ी राजाओं के युद्ध में दांत खट्टे किए तथा मुगल सेना में भगदड़ मचा दी।

शाही सेना भारी प्रयत्नों के बावजूद सिंहों को कुचल न सकी और गुरु जी को नुक्सान पहुंचाने में असफल रही। चाहे वह भंगाणी का युद्ध था अथवा श्री आनंदपुर साहिब में हुए युद्ध की टक्कर या खिदराणा की ढाब (श्री मुक्तसर साहिब) पर हुआ मुकाबला, हर बार मुगलों की शाही सेना को मुंह की खानी पड़ी तथा निराश एवं विवश होकर वापस लौटना पड़ा।

गुरु जी की दिव्य दृष्टि ने अलौकिक कौतुक दर्शाए। श्री आनंदपुर साहिब को छोडऩे के उपरांत आप कुछेक सिंहों के साथ चमकौर की कच्ची गढ़ी में घिर गए। मुगलों की शाही सेना आप के पीछे लगी हुई थी। आप कुछेक सिंहों सहित हजारों की संख्या में शाही सेना को रोके रहे। अपने जिगर के टुकड़ों साहिबजादा अजीत सिंह जी तथा साहिबजादा जुझार सिंह जी को भी दुश्मन से लडऩे के लिए जंग के मैदान में भेजा और पुत्रों की शहादत देकर सांसारिक लोगों के सामने विलक्षण एवं अतुलनीय मिसालें कायम कीं। दूसरी तरफ छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह तथा बाबा फतेह सिंह जी को शहीद करने तथा माता गुजरी जी का अकाल चलाना सुनकर भी आप ने प्रभु का शुक्राना ही किया। चारों सुपुत्रों व पिता को कुर्बान कर अपने मिशन से मुंह नहीं मोड़ा।

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