गाँव की तरफ – उदय प्रताप सिंह

कुछ कह रहे हैं खेत और खलियान गाँव की तरफ,
पर नहीं सरकार का है ध्यान गाँव की तरफ।

क्या पढ़ाई‚ क्या सिंचाई‚ क्या दवाई के लिये,
सिर्फ काग़ज़ पर गए अनुदान गाँव की तरफ।

शहर में माँ–बाप भी लगते मुसीबत की तरह,
आज भी मेहमान है मेहमान गाँव की तरफ।

इस शहर के शोर से बहरे भी हो सकते हैं हम,
इसलिये अच्छा है रक्खें कान गाँव की तरफ।

सब पुलिस थाना कचहरी झुकते शहरों के लिये,
बस विधाता और है भगवान गाँव की तरफ।

पत्थरों के शहर में हैं सख्त दिल रोबोट सब,
रह रहे हैं थोड़े से इंसान गाँव की तरफ।

∼ उदय प्रताप सिंह

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