अंतर - कुंवर बेचैन

अंतर – कुंवर बेचैन

मीठापन जो लाया था मैं गाँव से
कुछ दिन शहर रहा अब कड़वी ककड़ी है।

तब तो नंगे पाँव धूप में ठंडे थे
अब जूतों में रह कर भी जल जाते हैं
तब आया करती थी महक पसीने से
आज इत्र भी कपड़ों को छल जाते हैं
मुक्त हँसी जो लाया था मैं गाँव से
अब अनाम जंजीरों ने आ जकड़ी है।

तालाबों में झाँक सँवर जाते थे हम
अब दर्पण भी हमको सजा नहीं पाते
हाथों में लेकर जो फूल चले थे हम
शहरों में आते ही बने बहीखाते
नन्हा तिल जो लाया था मैं गाँव से
चेहरे पर अब जाल पूरती मकड़ी है।

तब गाली भी लोकगीत सी लगती थी
अब यक़ीन भी धोकेबाज़ नज़र आता
तब तो घूँघट तक का मौन समझते थे
अब न शोर भी अपना अर्थ बता पाता
सिंह गर्जना लाया था मैं गाँव से
अब वह केवल पात चबाती बकरी है।

∼ कुंवर बेचैन

Check Also

साप्ताहिक राशिफल

साप्ताहिक राशिफल मई 2024: ऐस्ट्रॉलजर चिराग दारूवाला

साप्ताहिक राशिफल 29 अप्रैल – 05 मई, 2024 साप्ताहिक राशिफल अप्रैल 2024: राशियाँ राशिचक्र के …