फागुन के दिन की एक अनुभूति – धर्मवीर भारती

फागुन के सूखे दिन
कस्बे के स्टेशन की धूल भरी राह बड़ी सूनी सी
ट्रेन गुजर जाने के बाद
पके खेतों पर ख़ामोशी पहले से और हुई दूनी सी
आंधी के पत्तों से
अनगिन तोते जैसे टूट गिरे
लाइन पर, मेड़ों पर, पुलिया आस पास
सब कुछ निस्तब्ध शांत मूर्छित सा अकस्मात्…
चौकन्नी लोखरिया उछली
और तेज़ी से तार फांद लाइन कर गई क्रॉस

जैसे शीशे में चटखे दरार
सहसा मुझको यह अहसास हुआ–
यह सब है और किसी का
यह पगडंडी, यह गांव, सुग्गों के हरे पंख, गति जीवन:
सबका सब और किसी का
मेरा है केवल निर्वासन, निर्वासन, निर्वासन…

∼ धर्मवीर भारती

शब्दार्थ:
निर्वासन ∼ देश निकाला

About Dharamvir Bharati

धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को १९७२ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है।

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