अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha Matsyendrasana): करने की विधि, लाभ व सावधानी

अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha Matsyendrasana): करने की विधि, लाभ व सावधानी

अर्धमत्स्येन्द्रासन: योगी मत्स्येनद्र नाथ इस आसन में बैठकर तपस्या करते थे। इसलिए इसे अर्धमत्स्येन्द्रासन कहते हैं।

अर्धमत्स्येन्द्रासन: करने की विधि, लाभ व सावधानी

सावधानी:

घुटना दर्द के रोगी व गर्भकाल में महिलाएं इस आसन का अभ्यास न करें।

विधि:

आसन पर टांगों को सामने की ओर फैला कर बैठें। एड़ी, पंजे मिलाएं। दोनों हथेलियां घुटनों पर। दायीं टांग को इस प्रकार मोड़ें कि एड़ी बाएं नितम्ब के पास आ जाए। बायीं टांग सीधी, पंजा तना हुआ, दोनों घुटने मिले हुए तथा सामानान्तर हों। दोनों हथेली घुटने पर, अंगुलियां मिली हुईं। बायीं टांग को मोड़ते हुए बाएं तलवे को दाएं घुटने के बाहर रखें। खड़ा घुटना छाती के निकट जाए। दाईं भुजा बाएं घुटने के ऊपर से लाते हुए बायीं टांग का पंजा पकड़ लें। बायीं भुजा कमर के पीछे लपेटें। श्वास बाहर निकालते हुए धड़ को बायीं ओर अधिक से अधिक घुमाएं। गर्दन को भी बायीं ओर घुमाते हुए ठोढ़ी को बाएं कंधे की ओर लाएं। श्वास को सामान्य करके रुकें। श्वास भरते हुए पूर्व स्थिति में वापिस आएं। यही क्रिया दूसरी ओर से भी उतनी ही देर तक करें, जितनी देर तक पहली ओर से किया था। धीरे-धीरे वापिस आएं। पैर खोल कर सम स्थिति में विश्राम करें।

Ardha Matsyendrasana is a traditional yoga pose that was named after the famous founder of yoga, Matsyendra. This pose spurs the flexibility of your spine, and improves your balance, concentration and breathing. The name of this pose is composed of two Sanskrit words: “Ardha” which means half, and “Matsyendra” which means the “Lord of the Fishes”. The name of this pose is derived from the resemblance of the pose to the shape of a fish, with legs on one side and the head and tail on the other side. This video is about Ardha Matsyendrasana (Half Lord of the Fishes pose) with an in-depth explanation of the pose, the purpose and benefits of the pose, and the various steps involved in it.

लाभ: अर्धमत्स्येन्द्रासन

  • रीढ़ के दोष ठीक होते हैं।
  • पुरानी पेचिश, पेट के कीड़े तथा नसों की दुर्बलता इस आसन के सतत्‌ अभ्यास से दूर होती हैं। महिलाओं में मासिक धर्म नियमित होता है।
  • जिगर, तिल्‍ली एवं आमाशय पर दबाव पड़ने से वे सक्रिय होते हैं। पेनक्रियाज़ ग्रंथि का स्राव नियंत्रित होता है।
  • इससे मधुमेह आदि रोगों से भी मुक्ति मिलती है।

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