इंदिरा गांधी के अनमोल वचन

इंदिरा गांधी के अनमोल वचन विद्यार्थियों के लिए

इंदिरा गांधी के अनमोल वचन: इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (19 नवंबर 1917 – 31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।

इंदिरा गांधी के अनमोल वचन विद्यार्थियों के लिए

  • मेरे पिता एक राजनेता थे, मैं एक राजनीतिक औरत हूँ, मेरे पिता एक संत थे। मैं नहीं हूँ।
  • मेरे दादा जी ने एक बार मुझसे कहा था कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं: वो जो काम करते हैं और वो जो श्रेय लेते हैं। उन्होंने मुझसे कहा था कि पहले समूह में रहने की कोशिश करो, वहां बहुत कम प्रतिस्पर्धा है।
  • उन मंत्रियों से सावधान रहना चाहिए जो बिना पैसों के कुछ नहीं कर सकते, और उनसे भी जो पैसे लेकर कुछ भी करने की इच्छा रखते हैं।
  • लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को याद रखते हैं।
  • प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है।
  • भारत में कोई राजनेता इतना साहसी नहीं है कि वो लोगों को यह समझाने का प्रयास कर सके कि गायों को खाया जा सकता है।
  • वहां प्रेम नहीं है जहां इच्छा नहीं है।
  • आप बंद मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते।
  • आपको गतिविधि के समय स्थिर रहना और विश्राम के समय क्रियाशील रहना सीख लेना चाहिए।
  • एक देश की ताकत अंततः इस बात में निहित है कि वो खुद क्या कर सकता है, इसमें नहीं कि वो औरों से क्या उधार ले सकता है।
  • मेरे सभी खेल राजनीतिक खेल होते थे; मैं जोन ऑफ आर्क की तरह थी, मुझे हमेशा दांव पर लगा दिया जाता था।
  • क्रोध कभी बिना तर्क के नहीं होता, लेकिन कभी – कभार ही एक अच्छे तर्क के साथ।
  • यदि मैं इस देश की सेवा करते हुए मर भी जाऊं, मुझे इसका गर्व होगा। मेरे खून की हर एक बूँद… इस देश की तरक्की में और इसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदान देगी।
  • क्षमा वीरों का गुण है।
  • कुछ करने में पूर्वाग्रह है – चलिए अभी कुछ होते हुए देखते हैं। आप उस बड़ी योजना को छोटे -छोटे चरणों में बाँट सकते हैं और पहला कदम तुरंत ही उठा सकते हैं।
  • अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूँ, जैसा की कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड्यंत्र कर रहे हैं, मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं।
  • शहादत कुछ ख़त्म नहीं करती, वो महज़ शुरआत है।

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