जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही

हर किसी आँख में खुमार नहीं
हर किसी रूप पर निखार नहीं
सब के आँचल तो भर नहीं देता
प्यार धनवान है उदार नहीं।

सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा
कोई आहट कोई पुकार नहीं
क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े
अब तो तेरा भी इंतजार नहीं।

पर झरोखे की राह चुपके से
चाँदनी इस तरह उतर आई
जैसे दरपन की शोख बाहों में
काँपती हो किसी कि परछाई।

मैंने चाहा कि भूल जाऊँ पर
अनदिखे हाथ ने उबार लिया
मरे माथे की सिलवटों को तभी
गीत के होंठ ने सँवार दिया।

एक नटखट अधीर बच्चे सी
कुछ बहाना बना ही लेती है
रूठिये लाख गुदगुदा के मगर
ज़िन्दगानी मना ही लेती है।

∼ बालस्वरूप राही

About Bal Swaroop Rahi

बालस्वरूप राही जन्म– १६ मई १९३६ को तिमारपुर, दिल्ली में। शिक्षा– स्नातकोत्तर उपाधि हिंदी साहित्य में। कार्यक्षेत्र: दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के साहित्यिक सहायक, लेखन, संपादन व दूरदर्शन के लिये लगभग तीस वृत्तिचित्रों का निर्माण। कविता, लेख, व्यंग्य रचनाएँ, नियमित स्तंभ, संपादन और अनुवाद के अतिरिक्त फिल्मों में पटकथा व गीत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ: कविता संग्रह- मौन रूप तुम्हारा दर्पण, जो नितांत मेरी है, राग विराग। बाल कविता संग्रह- दादी अम्मा मुझे बताओ, जब हम होंगे बड़े, बंद कटोरी मीठा जल, हम सबसे आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ आदि।

Check Also

Shree Shankheshwar Parshwanath Jain Temple, Gummileru, India

Shree Shankheshwar Parshwanath Jain Temple, Gummileru, India

Shree Shankheshwar Parshwanath Jain Temple is one of the Jain pilgrimage sites in Andhra Pradesh. This …