गंगाजल – मनोहर लाल ‘रत्नम’

गंगाजल अंजलि में भरकर, सूरज का मुख धुलवायें।
घना कुहासा, गहन अँधेरा, नया सवेरा ले आयें।।

देश मेरे में बरसों से ही, नदी आग की बहती है।
खून की धरा से हो लथपथ, धरती ही दुख सहती है।
शमशानों के बिना धरा पर, जलती है कितनी लाशें
हर मानव के मन में दबी सी, कुछ तो पीड़ा रहती है।
अब धरती का दुख हरने को कुछ हरियाली बो जायें।
गंगाजल अंजलि में भरकर, सूरज का मुख धुलवायें।

मौन बिछा जाता है पलपल, पर हँसने की बात कहाँ?
होठों को मुसकान मिले पर, अपनी है औकात कहाँ?
इसने, उसने, तुमने मैंने, सब कुछ चौपट कर डाला।
कोई किसी को प्यार बाँट दे, ऐसी अब सौगात कहाँ?
चीखों और कराहों में अब, हम न बिलकुल खो जायें।
गंगाजल अंजलि में भरकर, सूरज का मुख धुलवायें।

ग्रहण लगे सूरज ने कल ही, बस इतना संकेत दिया।
चन्दा पूछ रहा मानव से, किसने रक्त को श्वेत किया।
आतंकित हो भय पनपा है, तारों ने गणना की है–
अम्बर से बारूदी धुँए का अब तो आकेत लिया।
कैसा समय घिनौना ‘रत्नम’, चलकर घर तक हो आयें
गंगाजल अंजलि में भरकर, सूरज का मुख धुलवायें।

∼ मनोहर लाल ‘रत्नम’

About Manohar Lal Ratnam

जन्म: 14 मई 1948 में मेरठ में; कार्यक्षेत्र: स्वतंत्र लेखन एवं काव्य मंचों पर काव्य पाठ; प्रकाशित कृतियाँ: 'जलती नारी' (कविता संग्रह), 'जय घोष' (काव्य संग्रह), 'गीतों का पानी' (काव्य संग्रह), 'कुछ मैं भी कह दूँ', 'बिरादरी की नाक', 'ईमेल-फ़ीमेल', 'अनेकता में एकता', 'ज़िन्दा रावण बहुत पड़े हैं' इत्यादि; सम्मान: 'शोभना अवार्ड', 'सतीशराज पुष्करणा अवार्ड', 'साहित्य श्री', 'साहित्यभूषण', 'पद्याकार', 'काव्य श्री' इत्यादि

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