दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक और वो बे-जार,
या इलाही ये माजरा क्या है।
मैं भी मुंह में जुबान रखता हूं,
काश पूछो के मुद्दा क्या है।
जब कि तुझ बिन कोई नहीं मौजूद,
फिर ये हंगामा-ए-खुदा क्या है।
सब्जा ओ गुल कहां से आए हैं,
अब्र क्या चीज है, हवा क्या है।
हमको उनसे वफा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफा क्या है।
हां भला कर तिरा भला होगा,
और दरवेश की सदा क्या है।
जान कम पर निसार करताहं,
मैं नहीं जानता दुआ क्या है।
मैं ने माना कि कुछ नहीं ‘गालिब’,
मुफ्त हाथ आए तो बुरा क्या है।
मायने:
- दिल-ए-नादां – नादान / नासमझ दिल
- मुश्ताक – उत्सुक
- बे-जार – निराश
- सब्जा ओ गुल – हरियाली और फूल
- अब्र – बादल
- सदा – पुकार
मिर्जा गालिब:
मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान, जो अपने तख़ल्लुस ग़ालिब से जाने जाते हैं, उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के एक महान शायर थे। इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है। यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी “मीर” भी इसी वजह से जाने जाता है। ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का ख़िताब मिला।
ग़ालिब (और असद) तख़ल्लुस से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे। आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्दू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है। उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में यूं तो बहुत से अच्छे शायर हैं, लेकिन उनकी शैली सबसे निराली है:
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
Mirja sahab ki baat hi ajab hai… baat nikli hai to door talak jayegi… aah ko chahiye ik umra asar hone tak