Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

तुम्हारी उम्र वासंती – दिनेश प्रभात

लिखी हे नाम यह किसके, तुम्हारी उम्र वासंती? अधर पर रेशमी बातें, नयन में मखमली सपने। लटें उन्मुक्त­सी होकर, लगीं ऊंचाइयाँ नपनें। शहर में हैं सभी निर्थन, तुम्हीं हो सिर्फ धनवंती। तुम्हारा रूप अंगूरी तुम्हारी देह नारंगी। स्वरों में बोलती वीणा हँसी जैसे कि सारंगी। मुझे डर है न बन जाओ कहीं तुम एक किंवदंती। तुम्हें यदि देख ले तो, …

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वही बोलें – संतोष यादव ‘अर्श’

सियासत के किले हरदम बनाते हैं, वही बोलें जो हर मसले पे कुछ न कुछ बताते हैं, वही बोलें। बचत के मामले में पूछते हो हम गरीबों से? विदेशी बैंकों में जिनके खाते हैं, वही बोलें। लगाई आग किसने बस्तियों में, किसने घर फूंके दिखावे में जो ये शोले बुझाते हैं, वही बोलें। मुसव्विर मैं तेरी तस्वीर की बोली लगाऊं …

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विज्ञान विद्यार्थी का प्रेम गीत – धर्मेंद्र कुमार सिंह

अवकलन समाकलन फलन हो या चलन­कलन हरेक ही समीकरण के हल में तू ही आ मिली। घुली थी अम्ल क्षार में विलायकों के जार में हर इक लवण के सार में तू ही सदा घुली मिली। घनत्व के महत्व में गुरुत्व के प्रभुत्व में हर एक मूल तत्व में तू ही सदा बसी मिली। थी ताप में थी भाप में …

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गाँव के कुत्ते – सूंड फैजाबादी

हे मेरे गाँव के परमप्रिय कुत्ते मुझे देख–देख कर चौंकते रहो और जब तक दिखाई पडूं भौंकते रहो, भौंकते रहो, मेरे दोस्त भौंकते रहो। इसलिए की मैं हाथी हूं गाँव भर का साथी हूं बच्चे, बूढ़े, जवान, सभी छिड़कते हैं जान मगर तुम खड़ा कर रहे हो विरोध का झंडा बेकार का वितंडा। अपना तो ऐसे–वैसों से कोई वास्ता नहीं …

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गाँव की तरफ – उदय प्रताप सिंह

कुछ कह रहे हैं खेत और खलियान गाँव की तरफ, पर नहीं सरकार का है ध्यान गाँव की तरफ। क्या पढ़ाई‚ क्या सिंचाई‚ क्या दवाई के लिये, सिर्फ काग़ज़ पर गए अनुदान गाँव की तरफ। शहर में माँ–बाप भी लगते मुसीबत की तरह, आज भी मेहमान है मेहमान गाँव की तरफ। इस शहर के शोर से बहरे भी हो सकते …

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गिरिधर की कुंडलियाँ – गिरिधर कविराय

लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग गहरी नदी, नारा जहाँ, तहाँ बचावै अंग तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता को मारै दुशमन दावागीर, होय तिनहूँ को झारै कह गिरिधर कविराय, सुनो हो धूर के बाठी सब हथियारन छाँड़ि, हाथ में लीजै लाठी दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान चंचल जल दिन चारि को, ठाँउ न रहत निदान ठाँउ …

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गीत का पहला चरण हूं – इंदिरा गौड़

गुनगुनाओ तो सही तुम तनिक मुझको मैं तुम्हारे गीत का पहला चरण हूं। जब तलक अनुभूत सच की शब्द यात्रा है अधूरी झेलनी है प्राण को गंतव्य से तब तलक दूरी समझ पाया आज तक कोई न जिसको उस अजानी सी व्यथा का व्याकरण हूं। अधिकतर संबंध ऐसे राह में जो छोड़ देते प्राण तक गहरे न उतरें सतह पर …

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अब घर लौट आओ – महेश्वर तिवारी

चिट्ठियाँ भिजवा रहा है गाँव, अब घर लौट आओ। थरथराती गंध पहले बौर की कहने लगी है, याद माँ के हाथ पहले कौर की कहने लगी है, थक चुके होंगे सफ़र में पाँव अब घर लौट आओ। कह रही है जामुनी मुस्कान फूली है निबोरी कई वर्षों बाद खोली है हरेपन ने तिजोरी फिर अमोले माँगते हैं दाँव अब घर …

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घर की बात – प्रेम तिवारी

जाग–जागे सपने भागे आँचल पर बरसात मैं होती हूँ, तुम होते हो सारी सारी रात। नीम–हकीम मर गया कब का घर आँगन बीमार बाबू जी तो दस पैसा भी समझे हैं दीनार ऊब गयी हूँ कह दूंगी मैं ऐसी–वैसी बात। दादी ठहरीं भीत पुरानी दिन दो दिन मेहमान गुल्ली–डंडा खेल रहे हैं बच्चे हैं नादान टूटी छाजन झेल न पाएगी …

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गीली शाम – चन्द्रदेव सिंह

तुम तो गये केवल शब्दों के नाम पलकों की अरगनी पर टांग गये शाम। एक गीली शाम। हिलते हवाओं में तिथियों के लेखापत्र एक–एक कर सारे फट गये केवल पीलपन – पीलापन मुंडेरों पर‚ फसलें पर‚ पेड़ों पर सूरज के और रंग किरनों से छंट गये। बूढ़ी ऋतुओं को हो चला है जुकाम। तुम तो दे गये केवल शब्दों के …

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