Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

मधुर मधुर मेरे दीपक जल – महादेवी वर्मा

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें मिल! सिहर-सिहर मेरे दीपक …

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कहां रहेगी चिड़िया – महादेवी वर्मा

आंधी आई जोर-शोर से डाली टूटी है झकोर से उड़ा घोंसला बेचारी का किससे अपनी बात कहेगी अब यह चिड़िया कहां रहेगी ? घर में पेड़ कहां से लाएं कैसे यह घोंसला बनाएं कैसे फूटे अंडे जोड़ें किससे यह सब बात कहेगी अब यह चिड़िया कहां रहेगी ? ∼ महादेवी वर्मा

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जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले! पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना! जाग …

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ज़िन्दगी की शाम – राजीव कृष्ण सक्सेना

कह नहीं सकता समस्याएँ बढ़ी हैं, और या कुछ घटा है सम्मान। बढ़ रही हैं नित निरंतर, सभी सुविधाएं, कमी कुछ भी नहीं है, प्रचुर है धन धान। और दिनचर्या वही है, संतुलित पर हो रहा है रात्रि का भोजन, प्रात का जलपान। घटा है उल्लास, मन का हास, कुछ बाकी नहीं आधे अधूरे काम। और वय कुछ शेष, बैरागी …

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खिलौने ले लो बाबूजी – राजीव कृष्ण सक्सेना

खिलौने ले लो बाबूजी‚ खिलौने प्यारे प्यारे जी‚ खिलौने रंग बिरंगे हैं‚ खिलौने माटी के हैं जी। इधर भी देखें कुछ थोड़ा‚ गाय हाथी लें या घोड़ा‚ हरी टोपी वाला बंदर‚ सेठ सेठानी का जोड़ा। गुलाबी बबुआ हाथ पसार‚ बुलाता बच्चों को हर बार‚ सिपाही हाथ लिये तलवार‚ हरी काली ये मोटर कार। सजी दुल्हन सी हैं गुड़ियां‚ चमकते रंगों …

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कछुआ जल का राजा है – राजीव कृष्ण सक्सेना

कछुआ जल का राजा है, कितना मोटा ताजा है। हाथ लगाओ कूदेगा, बाहर निकालो ऊबेगा। सबको डांट लगाएगा, घर का काम कराएगा। बच्चों के संग खेलेगा, पूरी मोटी बेलेगा। चाट पापड़ी खाएगा, ऊंचे सुर में गाएगा। ∼ राजीव कृष्ण सक्सेना

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गर्मी और आम – राजीव कृष्ण सक्सेना

गर्मी आई लाने आम घर से निकले बुद्धूराम नहीं लिया हाथों में छाता गर्म हो गया उनका माथा दौड़े दौड़े घर को आए पानी डाला खूब नहाए फिर वो बोले हे भगवान कैसे लाऊं अब मैं आम? ∼ राजीव कृष्ण सक्सेना

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जितना नूतन प्यार तुम्हारा – स्नेहलता स्नेह

जितना नूतन प्यार तुम्हारा उतनी मेरी व्यथा पुरानी एक साथ कैसे निभ पाये सूना द्वार और अगवानी। तुमने जितनी संज्ञाओं से मेरा नामकरण कर डाला मैंनें उनको गूँथ-गूँथ कर सांसों की अर्पण की माला जितना तीखा व्यंग तुम्हारा उतना मेरा अंतर मानी एक साथ कैसे रह पाये मन में आग, नयन में पानी। कभी कभी मुस्काने वाले फूल-शूल बन जाया …

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मीलों तक – कुंवर बेचैन

जिंदगी यूँ भी जली‚ यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार कदम‚ धूप चली मीलों तक। प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमे अक्सर खत्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक। घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी खुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक। माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़ कर बरसी …

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उँगलियाँ थाम के खुद – कुंवर बेचैन

उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे। उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे। बस उसी दिन से खफा है वो मेरा इक चेहरा धूप में आइना इक रोज दिखाया था जिसे। छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर …

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