Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

आशा का दीपक – रामधारी सिंह दिनकर

यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से चमक रहे पीछे मुड देखो चरण-चिनह जगमग से शुरू हुई आराध्य भूमि यह क्लांत नहीं रे राही; और नहीं तो पाँव लगे हैं क्यों पड़ने डगमग से बाकी होश तभी …

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निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य

मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥1॥ मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं मैं तो मात्र शुद्ध …

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रेशमी नगर – रामधारी सिंह दिनकर

रेशमी कलम से भाग्य–लेख लिखने वाले तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोए हो? बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में तुम भी क्या घर भर पेट बाँधकर सोये हो? असहाय किसानों की किस्मत को खेतों में क्या अनायास जल में बह जाते देखा है? ‘क्या खायेंगे?’ यह सोच निराशा से पागल बेचारों को नीरव रह जाते देखा है? …

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शक्ति और क्षमा – रामधारी सिंह दिनकर

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा, पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा? क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुये विनत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही। अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है। क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो …

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पक्षी और बादल – रामधारी सिंह दिनकर

पक्षी और बादल ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं, मगर उनकी लायी चिठि्ठयाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरते हुए पक्षियों की …

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प्रेमिका का उत्तर कवि को – बालस्वरूप राही

पत्र मुझको मिला तुम्हारा कल चाँदनी ज्यों उजाड़ में उतरे क्या बताऊँ मगर मेरे दिल पर कैसे पुरदर्द हादसे गुज़रे। यह सही है कि हाथ पतझर के मैंने तन का गुलाब बेचा है मन की चादर सफेद रखने को सबसे रंगीन ख्वाब बेचा है। जितनी मुझसे घृणा तुन्हें होगी उससे ज्यादा कहीं मलिन हूँ मैं धूप भी जब सियाह लगती …

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पी जा हर अपमान – बालस्वरूप राही

पी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं! तूनें स्वाभिमान से जीना चाहा यही ग़लत था कहां पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है तेरा असफल हो जाना तो पहले से ही तय था तूने कोई समझौता स्वीकारा भी …

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कवि का पत्र प्रेमिका को – बालस्वरूप राही

आह, कितनी हसीन थीं रातें जो तड़पते हुए गुज़ारी थीं तुम न मानो मगर यही सच है मुझसे ज्यादा तो वे तुम्हारी थीं। थपथपाता था द्वार जब कोई आ गईं तुम, गुमान होता था उन दिनों कुछ अजीब हालत थी जागता भी न था, न सोता था। भोर आए तो यों लगे मुझको वह तुम्हारा सलाम लाई है दिन जो …

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कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं – बालस्वरूप राही

कंटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पांव को मेरे‚ कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं! हवाओं में न जाने आज क्यों कुछ कुछ नमी सी है डगर की ऊष्णता में भी न जाने क्यों कमी सी है‚ गगन पर बदलियां लहरा रहीं हैं श्याम आंचल सी कहीं तुम नयन में सावन बिछाए तो नहीं बैठीं! अमावस की …

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जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही

हर किसी आँख में खुमार नहीं हर किसी रूप पर निखार नहीं सब के आँचल तो भर नहीं देता प्यार धनवान है उदार नहीं। सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा कोई आहट कोई पुकार नहीं क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े अब तो तेरा भी इंतजार नहीं। पर झरोखे की राह चुपके से चाँदनी इस तरह उतर आई जैसे दरपन …

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