Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

रश्मिरथी – रामधारी सिंह दिनकर

रश्मिरथी, जिसका अर्थ “सूर्य का सारथी” है, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। इसमें ७ सर्ग हैं। रश्मिरथी अर्थात वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है। कर्ण महाभारत महाकाव्य का अत्यन्त यशस्वी पात्र है। …

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तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन – जयशंकर प्रसाद

तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल चेतना थक–सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन। चिर विषाद विलीन मन की, इस व्यथा के तिमिर वन की मैं उषा–सी ज्योति-रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन। जहाँ मरू–ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात …

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कामायनी – जयशंकर प्रसाद

हिम गिरी के उत्तंग शिखर पर‚ बैठ शिला की शीतल छांह‚ एक पुरुष‚ भीगे नयनों से‚ देख रहा था प्र्रलय प्रवाह! नीचे जल था‚ ऊपर हिम था‚ एक तरल था‚ एक सघन; एक तत्व की ही प्रधानता‚ कहो उसे जड़ या चेतन। दूर दूर तक विस्तृत था हिम स्तब्ध उसी के हृदय समान; नीरवता सी शिला चरण से टकराता फिरता …

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इंतजार – मनु कश्यप

इंतजार By Rajiv Krishna Saxena

जिंदगी सारी कटी करते करते इंतजार सिर्फ अब बढती उम्र मेँ इंतजार का एहसास ज्यादा है। इंतजार पहले भी था पर जवानी की उमंगों में वह कुछ छिप जाता था ज्यादा नजर नहीँ आता था पर अब छुपने वाला पर्दा गायब हो चुका है और अब घूरता है हमेँ शुबह शाम हर पल लगातार इंतजार। इच्छा है तो इंतजार है …

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जब तुम आओगी – मदन कश्यप

नहीं खुली है वह चटाई जिसे लपेट कर रख गई हो कोने में एक बार भी नहीं बिछी है वह चटाई तुम्हारे जाने के बाद, जिसे बिछाकर धूप सेंकते थे हम जो अँगीठी तुमने जलाई थी चूल्हे में उसी की राख भरी है चीज़ें यथावत् पड़ी हैं अप्रयुक्त तुम्हारे जाने के साथ ही मेरे भीतर का एक बहुत बड़ा हिस्सा …

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जाने क्या हुआ – ओम प्रभाकर

जाने क्या हुआ कि दिन काला सा पड़ गया। चीज़ों के कोने टूटे बातों के स्वर डूब गये हम कुछ इतना अधिक मिले मिलते–मिलते ऊब गये आँखों के आगे सहसा– जाला–सा पड़ गया। तुम धीरे से उठे और कुछ बिना कहे चल दिये हम धीरे से उठे स्वयं को– बिना सहे चल दिये खुद पर खुद के शब्दों का ताला …

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इतिहास की परीक्षा – ओम प्रकाश आदित्य

इतिहास परीक्षा थी उस दिन‚ चिंता से हृदय धड़कता था, थे बुरे शकुन घर से चलते ही‚ बाँया हाथ फड़कता था। मैंने सवाल जो याद किये‚ वे केवल आधे याद हुए, उनमें से भी कुछ स्कूल तलक‚ आते आते बर्बाद हुए। तुम बीस मिनट हो लेट‚ द्वार पर चपरासी ने बतलाया, मैं मेल–ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया। …

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इस घर का यह सूना आंगन – विजय देव नारायण साही

सच बतलाना‚ तुम ने इस घर का कोना–कोना देख लिया कुछ नहीं मिला! सूना आंगन‚ खाली कमरे यह बेगानी–सी छत‚ पसीजती दीवारें यह धूल उड़ाती हुई चैत की गरम हवा‚ सब अजब–अजब लगता होगा टूटे चीरे पर तुलसी के सूखे कांटे बेला की मटमैली डालें‚ उस कोने में अधगिरे घरौंदे पर गेरू से बने हुए सहमी‚ शरारती आंखों से वे …

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रहीम के दोहे

‘रहिमन’ धागा प्रेम को‚ मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना मिले‚ मिले गांठ पड़ जाय। रहीम कहते हैं कि प्रेम का धागा न तोड़ो। टूटने पर फिर नहीं जुड़ेगा और जुड़ेगा तो गांठ पड़ जाएगी। गही सरनागति राम की‚ भवसागर की नाव ‘रहिमन’ जगत–उधार को‚ और न कोऊ उपाय राम नाम की नाव ही भवसागर से पार लगाती है। …

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फूले फूल बबूल – नरेश सक्सेना

फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार। वही शाम पीले पत्तों की गुमसुम और उदास वही रोज का मन का कुछ — खो जाने का अहसास टाँग रही है मन को एक नुकीले खालीपन से बहुत दूर चिड़ियों की कोई उड़ती हुई कतार। फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार। जाने कैसी–कैसी बातें सुना रहे सन्नाटे सुन कर सचमुच अंग–अंग …

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