इस राह में हमारा उद्देश्य यह है कि किस प्रकार चीजों से ऊपर उठकर हम अपने निराकार शुद्ध रूप में लौट सकें। हममें से हर कोई एक खोल में बंद है और यह खोल हमारा शरीर है। इस खोल के भीतर एक सार्वभौमिक और असीम प्रकृति की अभिव्यक्ति है। हममें से हर कोई यहां बौद्धिक रूप में इस चेतना को तलाशने आया है।
किसी वस्तु की एकाग्रता पर पूरी तरह विचार करने के लिए जब हम खुद को केन्द्रित करने में सफल हो जाते हैं तो उसके बाद की अस्तित्व की अवस्था ही ध्यान कहलाती है। एकाग्रता तीन आयामों का आखिरी पड़ाव है और इसका लक्ष्य आत्मा के आयाम के सच होने से पहले भौतिक और मानसिक आयामों से गुजरना है, लेकिन अगर एक बार जब हम ध्यान की अवस्था प्राप्त कर लेते हैं तो हमारा अस्तित्व पूरी तरह से आत्मा के दायरे में होता है जो कि खुद तक की एक यात्रा है।
किसी भी चीज के प्रति आपकी सोच ज्यादा लंबे समय तक केन्द्रित नहीं रह सकती है, लेकिन पूरी तरह से सोच के अभाव से यह स्थिति बेहतर है। जब आत्मा मुक्त होती है तो वहां अहंकार भी नहीं रहता। हर व्यक्ति का अनुभव थोड़ा अलग होता है भले ही वह अनुभव एक ही स्रोत से क्यों ना मिला हो। आत्मा की उपस्थिति एक संतुलन को जन्म देती है और यह हमारे आस-पास की शांति का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती है।