पथ भूल न जाना – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

पथ भूल न जाना पथिक कहीं
पथ में कांटे तो होंगे ही
दुर्वादल सरिता सर होंगे
सुंदर गिरि वन वापी होंगे
सुंदरता की मृगतृष्णा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।

जब कठिन कर्म पगडंडी पर
राही का मन उन्मुख होगा
जब सपने सब मिट जाएंगे
कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा
तब अपनी प्रथम विफलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।

अपने भी विमुख पराए बन
आंखों के आगे आएंगे
पग पग पर घोर निराशा के
काले बादल छा जाएंगे
तब अपने एकाकीपन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।

रण भेरी सुन कर विदा विदा
जब सैनिक पुलक रहे होंगे
हाथों में कुमकुम थाल लिये
कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे
कर्तव्य प्रेम की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।

कुछ मस्तक काम पड़े होंगे
जब महाकाल की माला में
मां मांग रही होगी अहूति
जब स्वतंत्रता की ज्वाला में
पल भर भी पड़ असमंजस में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।

∼ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

About Shivmangal Singh Suman

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (5 अगस्त 1915 – 27 नवम्बर 2002) हिन्दी के शीर्ष कवियों में थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा भी वहीं हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी.ए. और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए., डी.लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कर ग्वालियर, इन्दौर और उज्जैन में उन्होंने अध्यापन कार्य किया। वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति भी रहे। 1974 में ‘मिट्टी की बारात’ पर साहित्य अकादमी तथा 1993 में भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित। 1974 भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित। उन्हें सन् 1999 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ‘सुमन’ जी का जन्म 5 अगस्त 1915 को ग्राम झगरपुर जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्होंने छात्र जीवन से ही काव्य रचना प्रारम्भ कर दी थी और वे लोकप्रिय हो चले थे। उन पर साम्यवाद का प्रभाव है, इसलिए वे वर्गहीन समाज की कामना करते हैं। पूँजीपति शोषण के प्रति उनके मन में तीव्र आक्रोश है। उनमें राष्ट्रीयता और देशप्रेम का स्वर भी मिलता है। प्रमुख कृतियाँ– काव्यसंग्रह: हिल्लोल, जीवन के गान, युग का मोल, प्रलय सृजन, विश्व बदलता ही गया, विध्य हिमालय, मिट्टी की बारात, वाणी की व्यथा, कटे अगूठों की वंदनवारें। आलोचना: महादेवी की काव्य साधना, गीति काव्य: उद्यम और विकास। नाटक: प्रकृति पुरुष कालिदास।

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