खाली कमरा - ज्ञान प्रकाश विवेक

खाली कमरा – ज्ञान प्रकाश विवेक

हमारे घर का मुख्य द्वार अकसर खुला रहता। कभी कोई भिखारी आ खड़ा होता तो हमारी मां प्लेट में आटा डालकर उनको दे आती। हमारे प्रतिवाद पर उसका रटा-रटाया वाक्य होता—मैं भी भूखी न रहूं… मेरा साधु न भूखा जाए…।

दरवाजा खुला रहता तो हमारा घर कुत्ते-बिल्लियों की सैरगाह बन जाता। हम कुत्तों को बाहर निकालते। वो फिर आ धमकते। एक बार मैंने जोर से कुत्ते को डण्डा मारा कि वह बिलबिलाता टांय-टांय करता चला गया।

कुत्ता लंगड़ाता हुआ-सा गया। पिता देखते रहे। वो बड़ी सख्ती से बोले, ‘इसे आदमीयत कहते हैं क्या? …कुत्ते किसी उम्मीद से घर आते हैं। पता नहीं वो कितने दिनों के भूखे हों।’

फिर रुककर बड़ी रंजीदगी से बोले, ‘वो रोटी की उम्मीद में आया था और तूने उसकी टांग तोड़ दी।’ इस वाकये के बाद पिता कई दिन तक मुझसे नहीं बोले। कुत्ता भी कई दिन तक घर नहीं आया। फिर एक दिन वही कुत्ता, सहमा-सहमा-सा ड्योढ़ी में आकर खड़ा हो गया। तब मुझे महसूस हुआ, पुरानी रंजिशें मनुष्यों में होती होंगी, जानवरों में नहीं होती।

उन दिनों मैं चार रोटियां खाया करता था। मैंने अपने हिस्से की दो रोटियां कुत्ते को डाल दीं। कुत्ते ने बड़े मन से खायीं। खाते-खाते वो रुक गया। मुझे देखने लगा। उसके मन में भय था। मेरे प्रति। कहीं मैं उसे फिर से न मार दूं।

बाद में वो कुत्ता हमारे घर का हिस्सा बन गया और अकसर ड्योढ़ी में पड़ा रहता। कई बार वो मेरे कमरे में भी आ जाता। अचानक मेरी नजर लकड़ी वाली अलमारी पर चली जाती है। अलमारी खाली है। पहले यह अलमारी किताबों से भरी रहती थी। अलमारी कुछ-कुछ मैली हो गयी है। अलमारी जब नयी थी तो इसकी लकड़ी से अजीब-सी खुशबू आती। मुझे अब भी याद है, उस बढ़ई की जो इस अलमारी को बना रहा था। हम उसे अपनी बोली में तरखान कहते थे। वो आरी या रंदा चलाते वक्त हांफ जाता। उसके रंदा चलाने में लय होती। उसी लय में वह मुलतानी काफियां भी गाता। हमें कभी समझ नहीं आया था कि वह क्या गा रहा है? उसे प्यास लगती तो वह बड़े संकोच के साथ पानी मांगता। कभी-कभी कहता, ‘पुत्तर, थोड़ा-सा गुड़ भी।’ मां पानी भेजती और गुड़ भी।

वह हमेशा तृप्त नजर आता। पूरे दिन में एक गिलास पानी और गुड़ की छोटी-सी डली उसके लिए काफी रहती। वह पुराने जमाने का आदमी था। फिर भी उर्दू के अलावा हिन्दी जानता था। हिन्दी जुबान में लिखी उसकी मुलतानी काफी पर, मैं जब भी अलमारी खोलता, नजर अटक जाती। बहुत सालों बाद उसकी लिखावट के शब्द धुंधले पड़ गये। लेकिन उस काफी को मैंने इतनी बार पढ़ा कि मुझे याद हो गयी:

सजन बिन रातां होइयां वड्डियां
मास झड़े, झड़ पिंजर होया
खड़कण लगियां हड्डियां
अश्क छपाया छपदा नाहीं
बिरहों तणावां गड्डियां
कहे फकीर हुसैन साईं दा
कमली कर-कर छड्डियां

वह कभी-कभी दार्शनिक हो जाता। कहता, ‘मकान बनाने वालों को कोई याद नहीं करता।’ आश्चर्य इस बात का है कि वह बूढ़ा-सा तरखान, जिसका नाम रामजीलाल था मुझे अब भी याद है। उसका रुक-रुककर पानी पीना… उसका गुड़ की छोटी-सी डली को, जरा-जरा खाना… उसका हांफना और पेंसिल को कान पर टिकाना और अलमारी के एक पल्ले पर जाते-जाते बुल्लेशाह की काफी लिख जाना…कुछ लोग निशानियां बन जाते हैं और अनायास याद आने लगते हैं।

कमरे का फर्श लाल रंग का है। जब यह फर्श बन रहा था, हम भाई-बहन बहुत खुश थे। तब हमारी उम्र भी ज्यादा नहीं थी। लेकिन हमें नयी चीजें अच्छी लगतीं। जैसे कि नया मकान और नये मकान का फर्श…। हम फर्श को छूकर देखते कि कितना चिकना है। मैं जिंदगी की हजारों बातें भूल चुका हूं। लेकिन फर्श को छूना और खुश होना, मुझे अब भी याद है। …मुझे यह भी याद है कि जब मकान बन रहा था तो पानी की कितनी दिक्कत होती थी। न गारा बनाने के लिए पानी होता न तराई के लिए। …हम जोहड़ से पानी लाते। जोहड़ करीब आधा फर्लांग दूर था। दो-दो बाल्टियां उठाकर लाना, वो भी जून-जुलाई के महीने में, हमारी सांस फूल जाती। हम पसीना-पसीना हो जाते। …एक दिन मैं जोहड़ से पानी की दो बाल्टियां भरकर लाया ही था कि फर्श पर पड़ी बाल्टियों को चारपाई की ठोकर लगी और दोनों बाल्टियां लुढ़क गयीं। …मुझे याद है, मेरी आंखों से आंसू आ गये थे, जैसे कि मेरा खजाना लुट गया हो।

About Gyan Prakash Vivek

आठवें दशक के उत्तरार्ध में उभरे ज्ञानप्रकाश विवेक आधुनिक युग लोकप्रिय व बहुचर्चित रचनाकारों में से हैं। हिन्दी ग़ज़लों के क्षेत्र में उनका नाम दुश्यंत कुमार के साथ लिया जाता है। कहानियों के क्षेत्र में भी उन्होंने काम किया है और भारतीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं। आपके दो ग़ज़ल संग्रह व एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके है।

Check Also

Danavulapadu Jain Temple, Kadapa District, Andhra Pradesh, India

Danavulapadu Jain Temple, Kadapa District, Andhra Pradesh, India

Danavulapadu Jain Temple is an ancient Jain center located in Danavulapadu village, within the Jammalamadugu …