नींद की पुकार – वीरबाला भावसार

नींद बड़ी गहरी थी, झटके से टूट गई
तुमने पुकारा, या द्वार आकर लौट गए।

बार बार आई मैं, द्वार तक न पाया कुछ
बार बार सोई पर, स्वप्न भी न आया कुछ
अनसूया अनजागा, हर क्षण तुमको सौंपा
तुमने स्वीकारा, या द्वार आकर लौट गए।

चुप भी मैं रह न सकी, कुछ भी मैं कह न सकी
जीवन की सरिता वन, झील रही बाह न सकी
रूठा मन राजहंस, तुम तक पहुंचा होगा
तुमने मनुहारा, या द्वार आकर लौट गए।

संझवाती बेला में, कोयल जब कूकी थी
मेरे मन में कोई, पीड़ा सी हूकी थी
अनचाही पाहुनिया, पलकों में ठहर गई
तुमने निहारा, या द्वार आकर लौट गए।

रात चली पुरवाई, ऋतु ने ली अंगड़ाई
मेरे मन पर किसने, केशर सी बिखराई
सूधि की भोली अलकें, माथे घिर आई थीं
तुमने संवारा, या द्वार आकर लौट गए।

मन के इस सागर में, सीप बंद मोती सी
मेरी अभिलाषा, सपनों मोईन भी सोती सी
पलकों के तट आकर, बार बार डूबी भी
तुमने उबारा, या द्वार आकर लौट गए।

कितने ही दीपक मैं, आंचल की ओट किये
नदिया तक लाई थी, लहरों पर छोड़ दिए
लहरों की तरनी से, दीपों के राही को
तटपर उतारा, या द्वार आकर लौट गए।

∼ डॉ. वीरबाला भावसार

About Veerbala Bhavsar

डॉ. वीरबाला भावसार (अक्टूबर 1931 – अगस्त 2010) स्वतंत्र्ता से पूर्व जन्मे रचनाकारों की उस पीढी से है, जिन्होंने प्रयोगवाद व प्रगतिवाद के दौर में अपनी रचना-यात्र प्रारम्भ की तथा आधुनिक मुक्त छंद की कविता तक विभिन्न सोपान से गुजरते हुए कविता कामिनी के सुकुमार स्वरूप को बनाए रखा। छायावादियों की तरह का एक रूमानी संसार कविता म बसाए रखना, इस प्रकार के रचनाकारों की विशिष्टता है। इस दौर में हिन्दी साहित्य में कई बडे रचनाकारों ने गद्य गीतों की रचना की। डॉ. वीरबाला भावसार द्वारा रचित इस संकलन की कुछ कविताओं यथा ‘भोर हुई है’, ‘मैं निद्रा में थी’, ‘वैरागिनी’, ‘तुलिका हूँ’ तथा ‘बाती जलती है’ आदि को गद्य गीत या गद्य काव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है।

Check Also

Danavulapadu Jain Temple, Kadapa District, Andhra Pradesh, India

Danavulapadu Jain Temple, Kadapa District, Andhra Pradesh, India

Danavulapadu Jain Temple is an ancient Jain center located in Danavulapadu village, within the Jammalamadugu …