बांसुरी दिन की - माहेश्वर तिवारी

बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी

होंठ पर रख लो उठा कर
बांसुरी दिन की

देर तक बजते रहें
ये नदी, जंगल, खेत
कंपकपी पहने खड़े हों
दूब, नरकुल, बेंत

पहाड़ों की हथेली पर
धूप हो मन की।

धूप का वातावरण हो
नयी कोंपल–सा
गति बन कर गुनगुनाये
ख़ुरदुरी भाषा

खुले वत्सल हवाओं की
दूधिया खिड़की।

∼ माहेश्वर तिवारी

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