नई भोर का समारोह है।
आज सिन्धु-गर्वित प्राणों में
उमड़ रहा उत्साह
मचल रहा है
नए सृजन के लक्ष्य बिन्दु पर
कवि के मुक्त छन्द-चरणों का
एक नया इतिहास।
आज देश ने ली स्वंत्रतता
आज गगन मुस्काया।
आज हिमालय हिला
पवन पुलके
सुनहली प्यारी-प्यारी धूप।
आज देश की मिट्टी में बल
उर्वर साहस –
आज देश के कण-कण
ने ली
स्वतंत्रता की साँस।
युग-युग के अवढर योगी की
टूटी आज समाधि
आज देश की आत्मा बदली
न्याय नीति संस्कृति शासन पर
चल न सकेंगे –
अब धूमायित-कलुषित पर संकेत
एकत्रित अब कर न सकेंगे, श्रम का सोना
अर्थ व्यूह रचना के स्वामी
पूंजी के रथ जोत।
आज यूनियन जैक नहीं
अब है राष्ट्रीय निशान
लहराओ फहराओ इसको
पूजो-पूजो-पूजो इसको
यह बलिदानों की श्रद्धा है
यह अपमानों का प्रतिशोध
कोटि-कोटि सृष्टा बन्धुओं को
यह सुहाग सिन्दूर।
यह स्वतंत्रता के संगर का पहला अस्त्र अमोध
आज देश जय-घोष कर रहा
महलों से बाँसों की छत पर नई चेतना आई
स्वतंत्रता के प्रथम सूर्य का है अभिनंदन-वन्दन
अब न देश फूटी आँखों भी देखेगा जन-क्रन्दन
अब न भूख का ज्वार-ज्वार में लाशें
लाशों में स्वर्ण के निर्मित होंगे गेह
अब ना देश में चल पाएगा लोहू का व्यापार
आज शहीदों की मज़ार पर
स्वतंत्रता के फूल चढ़ाकर कौल करो
दास-देश के कौतुक –करकट को बुहार कर
कौल करो।
आज देश में नई भोर है
नई भोर का समारोह है।