श्री गणेश जी: सर्वप्रथम उनकी पूजा - आखिर क्यों!

श्री गणेश जी: सर्वप्रथम उनकी पूजा – आखिर क्यों!

सर्वप्रथम श्री गणेश जी की पूजा: Our devotion gets redoubled when we find Ganapati available in the home or temple. We all have special and dedicated reverence towards Ganapati. The Hindu people across the world (specially India) do worship this omnipresent God first. Though the people of the world do worship this powerful elephant headed God first, very rare numbers of people know why Lord Ganesha is prayed first before starting any auspicious performance.

सर्वप्रथम श्री गणेश जी की पूजा – आखिर क्यों!

‘यज्ञ, पूजन, हवनादि के समय पहले किस देवता की पूजा की जाय?’ देवताओं में ही इस प्रश्न पर मतभेद हो गया था। सभी चाहते थे कि यह सम्मान मुझे मिले। जब आपस में कोई निपटारा न हो सका, तब सब मिलकर ब्रह्माजी के पास गये; क्योकि सबके पिता – पितामह तो ब्रह्माजी ही हैं और सत्पुरुष बड़े – बूढों की बात अवश्य मान लिया करते हैं। ब्रह्माजी ने देवताओं की बात सुनकर निर्णय सुना दिया – ‘जो पृथ्वी की प्रदक्षीणा करके सबसे पहले मेरे पास पहुँचे, वही सर्वश्रेष्ठ है और उसीकी सबसे पहले पूजा हुआ करेगी।’

Shri Ganesh Ji worshipping his parents
Shri Ganesh Ji worshipping his parents

देवताओं में दौड़ा-दौड़ मच गयी। कोई हाथी पर सवार हुआ, कोई घोड़े पर तो कोई रथ पर। पशु तथा पक्षियों पर भी देवता बैठ गये। जिसका जो वाहन है, वह अपने उस वाहन को पुरे वेग में दौड़ाने लगा। सभी इस प्रयत्न में लग गये कि पहले मैं हीं पृथ्वी की प्रदक्षीणा कर लूँ। अकेले गणेश जी खड़े सोचते रहे। एक तो उनका भारी-भरकम शरीर और बड़ी-सी तोंद, उसपर उनका वाहन ठहरा चूहा। वे सोच रहे थे – मेरा चूहे पर बैठ कर दौड़ना व्यर्थ है। चूहा इतने पशु-पक्षियों से दौड़ में आगे नहीं जा सकता। लेकिन सोचते-सोचते उन्हें एक बात सूझ गयी। वे चूहे पर कूदकर बैठ गये और सीधे कैलास की ओर भागे। किसी को गणेशजी की ओर देखने का अवकाश नहीं था।

कैलास पहुँच कर गणेश जी ने सीधे माता पार्वती का हाथ पकड़ा और कहा – ‘माँ! माँ! तू झटपट चलकर पिताजी के पास जरा देर को बैठ तो जा।’ पार्वतीजी ने अपने पुत्र की अकुलाहट देखकर हँसते हुए पूछा – ‘तुम इतनी शीघ्रता में क्यों है? क्या बात है?’ गणेश जी बोले – ‘तू चलकर पहले बैठ जा। पिताजी तो ध्यान करने बैठे हैं। वे तो उठेंगे नहीं, तू जल्दी चल।’ माता पार्वती क्या करती, पुत्र का आग्रह रखने के लिये वे भगवान शंकर के समीप बाईं और जाकर बैठ गयीं। गणेश जी ने भूमि पर लेटकर माता-पिता को प्रणाम किया और फिर अपने चूहे पर बैठकर दोनों की सात प्रदक्षिणा की। फिर माता-पिता को प्रणाम करके वे ब्रह्यलोक की ओर दौड़ चले।

जब देवता ब्रह्माजी के पास पहुँचे, तब उनहोंने देखा कि ब्रह्माजी के पास गणेशजी पहले से बैठे हैं। देवताओं ने समझा कि ये अपनी विजय होते न देखकर यहाँ से कहीं गये ही नहीं; किंतु ब्रह्माजी ने जब बताया कि सबसे पहले गणेशजी की पूजा होगी, तब सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। एक देवता ने कहा – ‘आपने तो कहा था कि जो पृथ्वी की प्रदक्षीणा करके पहले आयेगा, वही प्रथम पूज्य होगा।’

ब्रह्माजी बोले – ‘बात तो ठीक है; पर गणेश जी तो पृथ्वी की तथा समस्त ब्रह्माण्डों की एक-दो नहीं, पूरी सात प्रदक्षिणा करके सबसे पहले आ गये हैं।’ देवता एक-दूसरे का मुख देखने लगे – ‘यह कैसी बात? यह कैसे सम्भव है? ब्रह्माजी ने उन्हें समझाया – ‘माता साक्षात् पृथ्वी का स्वरूप है और पिता तो भगवान नारायण की मूर्ति ही हैं। भगवान नारायण के शरीर में ही समस्त ब्रह्माण्ड रहते हैं।’ देवता अब क्या कहते? उन्होंने गणेशजी को प्रणाम किया। पिता-माता में श्रद्धा रखने के कारण गणेश जी प्रथम पूज्य हो गये।

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