Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

पक्षी और बादल – रामधारी सिंह दिनकर

पक्षी और बादल ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं, मगर उनकी लायी चिठि्ठयाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरते हुए पक्षियों की …

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प्रेमिका का उत्तर कवि को – बालस्वरूप राही

पत्र मुझको मिला तुम्हारा कल चाँदनी ज्यों उजाड़ में उतरे क्या बताऊँ मगर मेरे दिल पर कैसे पुरदर्द हादसे गुज़रे। यह सही है कि हाथ पतझर के मैंने तन का गुलाब बेचा है मन की चादर सफेद रखने को सबसे रंगीन ख्वाब बेचा है। जितनी मुझसे घृणा तुन्हें होगी उससे ज्यादा कहीं मलिन हूँ मैं धूप भी जब सियाह लगती …

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पी जा हर अपमान – बालस्वरूप राही

पी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं! तूनें स्वाभिमान से जीना चाहा यही ग़लत था कहां पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है तेरा असफल हो जाना तो पहले से ही तय था तूने कोई समझौता स्वीकारा भी …

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कवि का पत्र प्रेमिका को – बालस्वरूप राही

आह, कितनी हसीन थीं रातें जो तड़पते हुए गुज़ारी थीं तुम न मानो मगर यही सच है मुझसे ज्यादा तो वे तुम्हारी थीं। थपथपाता था द्वार जब कोई आ गईं तुम, गुमान होता था उन दिनों कुछ अजीब हालत थी जागता भी न था, न सोता था। भोर आए तो यों लगे मुझको वह तुम्हारा सलाम लाई है दिन जो …

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कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं – बालस्वरूप राही

कंटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पांव को मेरे‚ कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं! हवाओं में न जाने आज क्यों कुछ कुछ नमी सी है डगर की ऊष्णता में भी न जाने क्यों कमी सी है‚ गगन पर बदलियां लहरा रहीं हैं श्याम आंचल सी कहीं तुम नयन में सावन बिछाए तो नहीं बैठीं! अमावस की …

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जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही

हर किसी आँख में खुमार नहीं हर किसी रूप पर निखार नहीं सब के आँचल तो भर नहीं देता प्यार धनवान है उदार नहीं। सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा कोई आहट कोई पुकार नहीं क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े अब तो तेरा भी इंतजार नहीं। पर झरोखे की राह चुपके से चाँदनी इस तरह उतर आई जैसे दरपन …

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जीवन क्रम – बालस्वरूप राही

जो काम किया‚ वह काम नहीं आएगा इतिहास हमारा नाम न दोहराएगा जब से सपनों को बेच खरीदी सुविधा तब से ही मन में बनी हुई है दुविधा हम भी कुछ अनगढ़ता तराश सकते थे दो–चार साल समझौता अगर न करते। पहले तो हम को लगा कि हम भी कुछ हैं अस्तित्व नहीं है मिथ्या‚ हम सचमुच हैं पर अक्समात …

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राही के मुक्तक – बालस्वरूप राही

मेरे आँसू तो किसी सीप का मोती न बने साथ मेरे न कभी आँख किसी की रोई ज़िन्दगी है इसकी न शिकायत मुझको गम तो इसका है की हमदर्द नहीं है कोई। आप आएं हैं तो बैठें जरा, आराम करें सिलसिला बात का चलता है तो चल पड़ता है आप की याद में खोया हूँ, अभी चुप रहिये बात करने …

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इस तरह तो – बालस्वरूप राही

इस तरह तो By Balswarup Rahi

इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं इस तरह तो वक्त कट सकता नहीं आस्तीनों से न आंसू पोंछिये और ही तदबीर कोई सोचिये। यह अकेलापन, अंधेरा, यह उदासी, यह घुटन द्वार तो है बंद, भीतर किस तरह झांके किरण। बंद दरवाजे ज़रा से खोलिये रोशनी के साथ हंसिए बोलिये मौन पीले–पात सा झर जाएगा तो हृदय का घाव खुद …

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व्यक्तित्व का मध्यांतर – गिरिजा कुमार माथुर

लो आ पहुँचा सूरज के चक्रों का उतार रह गई अधूरी धूप उम्र के आँगन में हो गया चढ़ावा मंद वर्ण–अंगार थके कुछ फूल रह गए शेष समय के दामन में। खंडित लक्ष्यों के बेकल साये ठहर गए थक गये पराजित यत्नों के अन–रुके चरण मध्याह्न बिना आये पियराने लगी धूप कुम्हलाने लगा उमर का सूरजमुखी बदन। वह बाँझ अग्नि …

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