Kumar Vishwas

डॉ॰ कुमार विश्वास (जन्म 10 फ़रवरी 1970) हिन्दी के एक अग्रणी कवि तथा सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता हैं। कविता के क्षेत्र में शृंगार रस के गीत इनकी विशेषता है। डॉ॰ कुमार विश्वास ने अपना करियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 मे शुरू किया। तत्पश्चात वो अब तक महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। इसके साथ ही डॉ॰ विश्वास हिन्दी कविता मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से हैं। उन्होंने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। डॉ॰ विश्वास मंच के कवि होने के साथ साथ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गीतकार भी हैं। उनके द्वारा लिखे गीत अगले कुछ दिनों में फ़िल्मों में दिखाई पड़ेगी। उन्होंने आदित्य दत्त की फ़िल्म 'चाय-गरम' में अभिनय भी किया है। कुमार विश्वास अगस्त २०११ के दौरान जनलोकपाल आंदोलन के लिए गठित टीम अन्ना के एक सक्रिय सदस्य रहे हैं। वे २६ नवम्बर २०१२ को गठित आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। डॉ॰ कुमार विश्‍वास अमेठी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, परन्‍तु हार गए।

हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते: कुमार विश्वास

हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते: कुमार विश्वास

हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते: Kumar Vishwas has emerged as a very popular Hindi poet who is also in politics. He often conveys his frustrations through his poems. His tussle with Aam Aadmi Party, especially with the chief Arvind Kejriwal is often talked about and recently culminated in refusal to him of Rajya Sabha nomination from AAP. He …

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मैं तो झोंका हूँ हवा का: कुमार विश्वास

मैं तो झोंका हूँ हवा का उड़ा ले जाऊँगा: कुमार विश्वास

मैं तो झोंका हूँ हवा का: कुमार विश्वास – Vishwas was born on 10 February 1970 in a middle class family in the town of Pilkhuwa in Uttar Pradesh, where he studied at Lala Ganga Sahay School. His father, Chandra Pal Sharma, was a lecturer at R.S.S. Degree College in Pilkhuwa and his mother, Rama Sharma, was a housewife. Vishwas …

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पगली लड़की: कुमार विश्वास

पगली लड़की: कुमार विश्वास

मावस कि काली रातों में, दिल का दरवाज़ा खुलता है जब दर्द कि प्याली रातों में, ग़म आँसू के संग घुलता है जब पिछवाड़े के कमरे में, हम निपट अकेले होते हैं जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं जब बार-बार दोहराने से, सारी यादें चुक जाती हैं जब ऊँच-नीच समझाने में, माथे की नस दुख …

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जिसकी धुन पर दुनिया नाचे: कुमार विश्वास

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे: कुमार विश्वास

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है, जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है, झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर, तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है। जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है, जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है, कतरा कतरा सागर …

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हंगामा: कुमार विश्वास

हंगामा: कुमार विश्वास

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा मैं उससे दूर था तो …

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रंग दुनिया ने दिखाया है निराला देखूँ: कुमार विश्वास

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला देखूँ: कुमार विश्वास

रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ, है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ आइना रख दे मेरे हाथ में, आख़िर मैं भी, कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ, जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते, उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ। हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है, यहाँ फरहाद के आगे …

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प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये: कुमार विश्वास

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये: कुमार विश्वास

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये, ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये। घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले, अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले। लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये, भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये। सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में, …

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कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है: कुमार विश्वास

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है: कुमार विश्वास

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है। मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है, ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है। मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है, कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है। यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों …

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कुछ छोटे सपनो के बदले: कुमार विश्वास

कुछ छोटे सपनो के बदले: कुमार विश्वास

कुछ छोटे सपनो के बदले, बड़ी नींद का सौदा करने, निकल पडे हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे… वही प्यास के अनगढ़ मोती, वही धूप की सुर्ख कहानी, वही आंख में घुटकर मरती, आंसू की खुद्दार जवानी, हर मोहरे की मूक विवशता, चौसर के खाने क्या जाने, हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे, निकल …

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डर लगता है!: कुमार विश्वास

डर लगता है! - हताश कुमार विश्वास की निराश कविता

हर पल के गुंजन की स्वर–लय–ताल तुम्हीं थे, इतना अधिक मौन धारे हो, डर लगता है! तुम, कि नवल–गति अंतर के उल्लास–नृत्य थे, इतना अधिक हृदय मारे हो, डर लगता है! तुमको छू कर दसों दिशाएं सूरज को लेने जाती थीं, और तुम्हारी प्रतिश्रुतियों पर बांसुरियाँ विहाग गाती थीं तुम, कि हिमालय जैसे, अचल रहे जीवन भर, अब इतने पारे–पारे …

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